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आलोचणमालुंचण विगडीकरणं च भावसुद्धी दु । आलोचिदह्यि आराधणा अणालोचणे भज्जा ।। मूला. ७/१२४ किन्तु आवश्यक नियुक्ति में 'वियडीकरणं' शब्द है । यथाआलोवणमालुंचण वियडीकरणं च भावसोही य। आलोइयंमि आराहणा, अणालोइए भवणा ।। आव.नि. १२४० . . इन दोनों में प्रयोग की दृष्टि से मूलाचार का प्रयोग अधिक उपयुक्त लगता
६. कृतिकर्म (वंदना) के प्रसंग में मूलाचार (गाथा ७/८०) में आवत्तगेहिं (आवर्तकै:) शब्द आया है, जबकि आवश्यक नियुक्ति (गाथा ११११) में 'आवस्सएहि' (आवश्यकैः) शब्द है ।
७. मूलाचार (गाथा ७/१३५) में प्रत्याख्यान के नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव-ये छह भेद बताये हैं । जबकि आवश्यक नियुक्ति (गाथा १५५१) में नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव ये चार भेद तो समान हैं, किन्तु क्षेत्र
और काल के स्थान पर 'अइच्छ पडिसेहमेव' पद द्वारा ‘अदित्सा' (न देने की इच्छा) और प्रतिषेध-इन दो भेदों का समावेश है ।
८. सामायिक शब्द की नियुक्ति कथन के प्रसंग में मूलाचार (७/२४) में जहाँ 'जस्स सण्णिहिदो अप्पा संजमे णियमे तपसि' कहा है, वहीं आवश्यक नियुक्ति (७९८) में 'जस्स सामाणिओ अप्या संजमे नियमे तवे' पंक्ति मिलती है । (मूलाचार वृत्ति-सण्णिहिदो-सन्निहितः स्थित: तथा आवश्यक नियुक्ति दीपिका में 'सामाणिओ'-सामानिक: समीपस्थः ऐसा आया है)। .
एक अन्य सुप्रसिद्ध गाथा भी दोनों ग्रन्थों में इस प्रकार हैसामाइयम्हि दु कदे समणो इर सावओ हवदि जह्या । एदेण कारणेण दु बहुसो सामाइयं कुज्जा ।। मूलाचार ७/३४ सामाइयंमि उकए समणो इव सावओ हवइ जम्हा । एएण कारणेणं बहुसो सामाइयं कुज्जा ।। आ० नि० ८०१ ।
इन गाथाओं से शौरसेनी और अर्धमागधी परम्परा के भाषात्मक प्रयोग में स्पष्ट अन्तर और समानता देखी जा सकती है ।
इसी प्रकार मूलाचार के सप्तम अधिकार की गाथा सं. १२९, ३६, ११६, १०३, १२०, ७९, ८०, ८१, १५१, १२०, १३५, ७२, ११, १४, ३४,
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