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________________ (३६) ८. अन्यान्य व्याख्या ग्रन्थ उपर्युक्त व्याख्या ग्रन्थों के अतिरिक्त आचार्य वीरनन्दि ने मूलाचार के आधार पर 'आचारसार' ग्रन्थ की रचना की है । चामुण्डराय ने चारित्रसार नामक ग्रन्थ की रचना भी मूलाचार के आधार पर की है । पं. आशाधर ने 'अनगार धर्मामृत' नामक अपने इस ग्रन्थ की रचना में इसी का आधार लिया इस प्रकार और भी अनेक ग्रन्थ मूलाचार के आधार पर लिखे गये, जिनमें आज कुछ प्रकाशित हैं, तो अनेक अप्रकाशित तथा अनुपलब्ध भी हैं । जिनके कहीं-कहीं उल्लेख मात्र मिलते हैं । मूलाचारगत आ० नि० और भद्रबाहुकृत आवश्यक नियुक्ति की तुलना शौरसेनी प्राकृत भाषा में रचित भाषा-मूलाचार तथा इसके अन्तर्गत आवश्यक नियुक्ति और अर्धमागधी प्राकृत में भद्रबाहुकृत आवश्यक नियुक्ति की अनेक गाथाओं में समानता होते हुए परस्पर में अपनी-अपनी परम्परागत भावभाषा-शैली तथा अन्यान्य दृष्टियों से निम्नलिखित प्रमुख अन्तर है । इसमें शब्दगत जो भी अन्तर है वे भाषाशास्त्र की दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण होने से ध्यातव्य है १. मूलाचार में पाँच पापों के त्याग के विवेचन प्रसंग में प्रथम हिंसा के लिए ‘पाणारंभ' तथा चतुर्थ 'कुशील' के लिए 'मेहूण' शब्द का प्रयोग है । यथा सव्वं पाणारंभं पच्चक्खामि अलीयवयणं च । सव्वमदत्तादाणं मेहूण परिग्गहं चेव ।। मूलाचार ३/२ आवश्यक नियुक्ति (भद्रबाहुकृत) में क्रमश: पाणाइवायं तथा 'अब्बंभ' शब्द प्रयुक्त है । साथ ही गाथा के अन्त में 'स्वाहा' इस संस्कृत शब्द का प्रयोग है । यथा सव्वं पाणाइवायं पच्चक्खाम्म अलियवयणं च । सव्वमदत्तादाणं अब्बंभ परिग्गहं स्वाहा ।।-आव.नि. १२६७ इसकी संस्कृत दीपिका में माणिक्य-शेखरसूरि ने स्वाहा शब्द का अर्थ इस प्रकार किया है-'स्वाहेति मन्त्रपरं परेषां पापविषनिवारणाज्ञप्त्यै प्रयुक्तं' । (आवश्यक नियुक्ति दीपिका, १२६७ भाग २ पृ. ३७) आवश्यक नियुक्ति में Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004237
Book TitleAavashyak Niryukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Jain, Anekant Jain
PublisherJin Foundation
Publication Year2009
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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