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में २५-२५ उच्छ्वास तथा ग्रन्थारम्भ, ग्रन्थसमाप्ति, स्वाध्याय, वन्दना तथा प्रणिधान में अशुभभाव के उत्पन्न होने पर — इस प्रकार प्रत्येक में २७-२७ उच्छ्वास कायोत्सर्ग का काल प्रमाण है' ।
कायोत्सर्ग करते समय यदि उच्छ्वासों की संख्या भूल जाये या संख्या में संदेह हो जाए तो आठ अधिक (अतिरिक्त) उच्छ्वास - प्रमाण कायोत्सर्ग करने का विधान है । उपर्युक्त कालप्रमाण के विभाजन को इस तरह समझा जा सकता है
१. दैवसिक प्रतिक्रमण
२. रात्रिक
३. पाक्षिक
४. चातुर्मासिक
५. सांवत्सरिक
आवश्यकनियुक्तिः
विभिन्न अवसरों के कायोत्सर्ग का काल प्रमाण
१०८
उच्छ्वास
५४
उच्छ्वास
३००
उच्छ्वास
४००
६. प्राणिवधादि रूप अतिचारों में ७. भक्त, पान (आहार) से आने पर तथा ग्रामान्तर गमन आदि में ८. निर्वाणादि भूमि में जाकर आने के बाद
९. अर्हत् - शय्या (निर्वाण आदि कल्याण भूमि
१०. अर्हत् निषद्या
११. श्रमण निषद्या
१२. उच्चार-प्रस्रवण करने के बाद
१३. ग्रन्थारम्भ में
१४. ग्रन्थ समाप्ति में
१५. स्वाध्याय में
१. २.
१६. वन्दना
१७. प्रणिधान में अशुभ भाव होने पर १८. कायोत्सर्ग के उच्छ्वास भूल जाने पर
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५००
१०८
२५
२५
२५
२५
२५
२५
२७
२७
२७
२७
२७
मूलाचार ७/१६२-१६३ ।
भगवती आराधना विजयोदया टीका गाथा ११६ ।
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उच्छ्वास
उच्छ्वास
उच्छ्वास
१९७
उच्छ्वास
उच्छ्वास
प्रमाण
प्रमाण
प्रमाण
प्रमाण
प्रमाण
प्रमाण
प्रमाण
प्रमाण
उच्छ्वास
प्रमाण
उच्छ्वास
प्रमाण
उच्छ्वास
प्रमाण
उच्छ्वास
प्रमाण
उच्छ्वास
प्रमाण
उच्छ्वास प्रमाण
उच्छ्वास
प्रमाण
उच्छ्वास प्रमाण
उच्छ्वास
प्रमाण
उच्छ्वास
प्रमाण
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