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________________ आवश्यकनियुक्तिः १८३ चाहिए कि एक के उच्चारण में नहीं, तो दूसरे के उच्चारण में मन स्थिर होगा । दूसरे में नहीं तो तीसरे में, तीसरे में नहीं तो चौथे में। इस तरह सभी प्रतिक्रमण-दण्डक कर्मक्षय में समर्थ होने से सभी प्रतिक्रमण दण्डकों के उच्चारण में कोई विरोध नहीं है । इसी विधान के अनुसार आज तक सभी मुनियों एवं आर्यिकाओं आदि को नित्य प्रतिक्रमण करने की परम्परा निरन्तर चली आ रही है । दस प्रकार के मुण्ड–प्रतिक्रमण आवश्यक के अन्तर्गत ही मूलाचार में दस मुण्डों का भी विवेचन किया है । दस मुण्ड-स्पर्श, रसन, घ्राण, चक्षु और श्रोत्र-इन पाँच इन्द्रियों को स्व-स्व विषयों में आसक्त न होने देना-ये पाँच इन्द्रियमुण्ड तथा ६. वचोमुण्ड अर्थात् अप्रस्तुत भाषण न करना । ७. हस्तमुंड-अप्रस्तुत कार्यों में हाथ न फैलाना, उसे संकुचित रखना । ८. पादमुण्ड-अयोग्य कार्य में पैरों को प्रवृत्त न होने देना । ९. मनोमुण्ड-मन के पापपूर्ण विचारों को नष्ट करना तथा १०. तनुमुण्ड-शरीर को अशुभ पापकार्य में प्रवृत्त न होने देना-इन दस मुण्डों से आत्मा पाप में प्रवृत्त नहीं होती है । अत: इनका पालन करने वाली आत्मा को मुण्डधारी कहते हैं । - इस तरह श्रमणाचार में प्रतिक्रमण का अपना विशिष्ट स्थान है । यह षडावश्यकों के अन्तर्गत होते हुए भी अपनी अत्यधिक महत्ता के कारण आजकल प्रतिक्रमण शब्द 'आवश्यक' शब्द का पर्यायवाची बन गया है । अर्थात् 'आवश्यक' शब्द का प्रयोग न करके भी छहों आवश्यकों के लिए 'प्रतिक्रमण' शब्द का प्रयोग होने लगा है । इतना ही नहीं, कुछ अर्वाचीन ग्रन्थों तक में 'प्रतिक्रमण' शब्द सामान्य 'आवश्यक' के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है । ५. प्रत्याख्यान आवश्यक - स्वरूप-प्रमादपूर्वक किये गये भूतकालीन दोषों का प्रक्षालन प्रतिक्रमण (पच्चक्खाण) कहलाता है तथा भविष्यकाल के प्रति मर्यादा के साथ अशुभयोग से निवृत्ति तथा शुभयोग में प्रवृत्ति का आख्यान (प्रतिज्ञा) करना प्रत्याख्यान है । तप के लिए निर्दोष वस्तु का त्याग करना भी प्रत्याख्यान है । २. वही वृत्ति० ३/१२१ । १. . मूलाचार ३/१२१ ।। ३. दे०-धर्मसंग्रह-प्रतिक्रमण विधि आदि । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004237
Book TitleAavashyak Niryukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Jain, Anekant Jain
PublisherJin Foundation
Publication Year2009
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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