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________________ जैन श्रमण के षड्- आवश्यक : एक तुलनात्मक अध्ययन नोआगम द्रव्यसामायिक के ही अन्तर्गत जो सामायिक शास्त्र का जानने वाला आगे होगा वह द्वितीय भेद-भावी नोआगम द्रव्यसामायिक है । तथा नो-आगम द्रव्यसामायिक का तृतीय भेद - 'तद्व्यतिरिक्त' के भी दो भेद हैंकर्म और नोर्म । १५६ इनमें ज्ञानावरणादि मूलप्रकृति रूप अथवा मतिज्ञानावरणादि उत्तरप्रकृति स्वरूप परिणमता हुआ कार्माण वर्गणा रूप पुद्गलद्रव्य कर्मतद्व्यतिरेक नोआगम द्रव्यसामायिक है । तथा कर्म-स्वरूप द्रव्य से भिन्न जो पुद्गल द्रव्य (शरीरादि) है, वह नोकर्म तद्व्यतिरिक्त नोआगम द्रव्यसामायिक है । इसके भी तीन भेद हैं १. सचित्त (उपाध्यायादि), २. अचित्त (पुस्तकादि) और ३. मिश्र - (उभयरूप) । द्रव्य सामायिक के उपर्युक्त भेद-प्रभेदों को निम्नलिखित चार्ट द्वारा समझा जा सकता है— आगम द्रव्यसामायिक भूत उत्तम च्युत च्यावित त्यक्त १. द्रव्यसामायिक ज्ञायक शरीर भक्तप्रत्याख्यान इंगिनीमरण Jain Education International वर्तमान भविष्यत् कर्म मूलाचारवृत्ति १ / १७ । भावी नोआगम द्रव्यसामायिक तद्व्यतिरिक्त सचित्त अचित्त मध्यम जघन्य (४) क्षेत्र सामायिक — रम्य क्षेत्र जैसे बगीचा, नगर, नदी, कूप, बावड़ी, तालाब, ग्राम, जनपद, नगर, देश आदि में राग और रूक्ष एवं कंटकयुक्त क्षेत्र आदि विषम कारणों में द्वेष न करना क्षेत्र सामायिक है ।" प्रायोपगमनमरण नोकर्म For Personal & Private Use Only मिश्र www.jainelibrary.org
SR No.004237
Book TitleAavashyak Niryukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Jain, Anekant Jain
PublisherJin Foundation
Publication Year2009
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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