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जैन श्रमण के षड्- आवश्यक : एक तुलनात्मक अध्ययन
नोआगम द्रव्यसामायिक के ही अन्तर्गत जो सामायिक शास्त्र का जानने वाला आगे होगा वह द्वितीय भेद-भावी नोआगम द्रव्यसामायिक है । तथा नो-आगम द्रव्यसामायिक का तृतीय भेद - 'तद्व्यतिरिक्त' के भी दो भेद हैंकर्म और नोर्म ।
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इनमें ज्ञानावरणादि मूलप्रकृति रूप अथवा मतिज्ञानावरणादि उत्तरप्रकृति स्वरूप परिणमता हुआ कार्माण वर्गणा रूप पुद्गलद्रव्य कर्मतद्व्यतिरेक नोआगम द्रव्यसामायिक है । तथा कर्म-स्वरूप द्रव्य से भिन्न जो पुद्गल द्रव्य (शरीरादि) है, वह नोकर्म तद्व्यतिरिक्त नोआगम द्रव्यसामायिक है । इसके भी तीन भेद हैं १. सचित्त (उपाध्यायादि), २. अचित्त (पुस्तकादि) और ३. मिश्र - (उभयरूप) ।
द्रव्य सामायिक के उपर्युक्त भेद-प्रभेदों को निम्नलिखित चार्ट द्वारा समझा जा सकता है—
आगम द्रव्यसामायिक
भूत
उत्तम
च्युत च्यावित त्यक्त
१.
द्रव्यसामायिक
ज्ञायक शरीर
भक्तप्रत्याख्यान इंगिनीमरण
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वर्तमान भविष्यत् कर्म
मूलाचारवृत्ति १ / १७ ।
भावी
नोआगम द्रव्यसामायिक
तद्व्यतिरिक्त
सचित्त अचित्त
मध्यम
जघन्य
(४) क्षेत्र सामायिक — रम्य क्षेत्र जैसे बगीचा, नगर, नदी, कूप, बावड़ी, तालाब, ग्राम, जनपद, नगर, देश आदि में राग और रूक्ष एवं कंटकयुक्त क्षेत्र आदि विषम कारणों में द्वेष न करना क्षेत्र सामायिक है ।"
प्रायोपगमनमरण
नोकर्म
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मिश्र
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