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आवश्यकनियुक्तिः
प्रथमत: द्रव्य सामायिक के दो भेद हैं
१. आगम द्रव्य-सामायिक-जैसे कोई व्यक्ति सामायिक का स्वरूप कहने वाले शास्त्र का जानने वाला हो किन्तु वह वर्तमान काल में उस शास्त्र में उपयोग नहीं रख रहा हो वह आगम-द्रव्य-सामायिक है ।। . २. नोआगम द्रव्यसामायिक-इसके तीन भेद हैं-भूत-ज्ञायकशरीर, भावी नोआगम और तद्-व्यतिरिक्त । इनमें सामायिक के स्वरूप को जानने वाले के शरीर को ज्ञायकशरीर कहते हैं । इसके भूत, भविष्य और वर्तमान ये तीन भेद हैं । इनमें प्रथम भूतज्ञायक शरीर च्युत, च्यावित और त्यक्त रूप में तीन प्रकार का है। इनमें १. च्युत-भूतज्ञायक शरीर से तात्पर्य जो सामायिकशास्त्र के ज्ञाता का भूत शरीर दूसरे किसी कारण के बिना केवल आयु के पूर्ण होने पर नष्ट हुआ हो । जैसे पके हुए फल का गिरना । २. च्यावित-जिस ज्ञायक का भूत शरीर कदलीघात की तरह किसी बाह्य निमित्त से नष्ट हो गया हो किन्तु सन्यास विधि से रहित हो उसे च्यावित कहते हैं । ३. त्यक्त–त्यक्त शरीर से तात्पर्य जिस शरीर को कदलीघात सहित अथवा कदलीघात के बिना सन्यासरूप परिणामों से छोड़ दिया हो ।
- त्यक्त शरीर के भी भक्त-प्रत्याख्यान, इंगिनी और प्रायोग्य (प्रायोपगमन)-ये तीन भेद हैं
१. भक्त-प्रत्याख्यान का अर्थ है भोजन न लेने की प्रतिज्ञा लेकर संन्यासमरण पूर्वक शरीर का छोड़ा जाना । इसमें भी उत्तम भक्तप्रत्याख्यान का समय बारह वर्ष, जघन्य अन्तर्मुहूर्त तथा दोनों के मध्य का काल मध्यम-भक्तप्रत्याख्यान का समय है।
२. इंगिनीमरण का अर्थ है अपने शरीर की टहल आप ही अपने अंगों से करे किसी दूसरे से रोगादिक का उपचार न करावे-इस विधान से जो संन्यास धारण करके मरण को प्राप्त हो ।
३. प्रायोपगमन मरण-जिसमें अपने तथा दूसरों के द्वारा भी उपचार न हो अर्थात् अपनी टहल न तो आप करे और न दूसरों से करावे-ऐसे संन्यासमरण को प्रायोपगमनमरण कहते हैं।
ज्ञायक शरीर के द्वितीय भेद भविष्यतज्ञायक शरीर का अर्थ है सामायिक शास्त्र का ज्ञाता जिस शरीर को आगामी काल में धारण करेगा तथा वर्तमान ज्ञायक शरीर से तात्पर्य जिस शरीर को वह धारण किये हुए हो। .
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