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________________ आवश्यकनियुक्तिः १४९ चूलिकामुपसंहरनाहणिज्जुत्ती णिज्जुत्ती एसा कहिदा मए समासेण । अह वित्थारपसंगोऽणियोगदो होदि णादव्यो ।।१८८।। निर्युक्तेर्नियुक्तिः एषा कथिता मया समासेन । अथ विस्तारप्रसंगो अनियोगात् भवति ज्ञातव्यः ॥१८८॥ निर्युक्तेर्नियुक्तिरावश्यकचूलिकावश्यकनियुक्तिरेषा' कथिता मया समासेन संक्षेपेणार्थविस्तारप्रसंगोऽनियोगादाचारांगाद्भवति ज्ञातव्य इति ॥१८८॥ आवश्यकनियुक्ति सचूलिकामुपसंहरन्नाहआवासयणिज्जुत्ती एवं कधिदा समासओ विहिणा । जो उवजूंजदि णिच्चं सो सिद्धिं जादि विसुद्धप्पा ।।१८९।। आवश्यकनियुक्तिः एवं कथिता समासतो विधिना । य: उपयुक्ते नित्यं स: सिद्धिं याति विशुद्धात्मा ॥१८९।। चूलिका का उपसंहार करते हुए कहते हैं गाथार्थ-मैंने संक्षेप से यह नियुक्ति की नियुक्ति कही है और विस्तार रूप से अनियोग ग्रन्थों से जानना चाहिए ॥१८८॥ .. आचारवृत्ति-मैंने संक्षेप से यह नियुक्ति की नियुक्ति अर्थात् आवश्यकचूलिका की आवश्यक नियुक्ति कही है । यदि आपको विस्तार से अर्थ जानना है तो अनियोग-आचारांग से जानना चाहिए ॥१८८॥ चूलिका सहित आवश्यक-नियुक्ति का उपसंहार करते हुए कहते गाथार्थ—इस तरह मैंने विधिवत् संक्षेप में आवश्यक नियुक्ति कही है । जो नित्य ही इनका आचरण (प्रयोग) करता है वह सर्वकर्म रहित-विशुद्ध-आत्मा सिद्धि को प्राप्त कर लेता है ॥१८९॥ १. क ०क्तिन्याये वा एषा । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary:org
SR No.004237
Book TitleAavashyak Niryukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Jain, Anekant Jain
PublisherJin Foundation
Publication Year2009
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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