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आवश्यकनियुक्तिः
एष प्रत्याख्यायक: पूर्वेण सम्बन्धः प्रत्याख्यानमित्युच्यते । त्यागः सावद्यस्य द्रव्यस्य निरवद्यस्य वा तपोनिमित्तं परित्यागः प्रत्याख्यानं प्रत्याख्यातव्यः परित्यजनीय उपधिः परिग्रहः सचित्ताचित्तमिश्रभेदभिन्नः क्रोधादिभेदभित्रश्चाहारश्चाभक्ष्यभोज्यादिभेदभिन्नो बोद्धव्य इति ॥१३४॥
प्रस्तुतं प्रत्याख्यानं प्रपञ्चयन्नाहपच्चक्खाणं उत्तरगुणेसु खमणादि होदि णेयविहं । तेणवि अ एत्थ पयदं तंपि य इणमो दसविहं तु ।।१३५।।
प्रत्याख्यानं उत्तरगुणेषु क्षमणादि भवति अनेकविधं ।
तेनापि च अत्र प्रयतं तदपि च इदं दशविधं तु ॥१३५।। __ प्रत्याख्यानं मूलगुणविषयमुत्तरगुणविषयं वक्ष्यमाणादिभेदेनाशनपरित्यागादिभेदेनानेकविधमनेकप्रकारं । तेनापि चात्र प्रकृतं प्रस्तुतं अथवा तेन प्रत्याख्यायकेनात्र यत्नः कर्त्तव्यस्तदेतदपि च दशविधं तदपि चैतत् क्षमणादि दशप्रकारं भवतीति वेदितव्यम् ॥१३५॥
आचारवृत्ति-पूर्व गाथा में कहा गया साधु प्रत्याख्यायक है । सावद्यद्रव्य का त्याग करना या तपोनिमित्त निर्दोष द्रव्य का त्याग करना प्रत्याख्यान है । सचित्त, अचित्त तथा मिश्र रूप बाह्य परिग्रह एवं क्रोधं आदि रूप आभ्यन्तर परिग्रह-ये उपधि हैं । भक्ष्य भोज्य आदि पदार्थ आहार कहलाते हैं । ये उपधि और आहार प्रत्याख्यातव्य हैं ॥१३४॥
प्रस्तुत प्रत्याख्यान का विस्तार से वर्णन करते हैं
गाथार्थ-उत्तरगुणों में जो अनेक प्रकार के उपवास आदि हैं वे प्रत्याख्यान हैं । उसमें प्रत्याख्यायक प्रयत्न करें सो यह प्रत्याख्यान दश प्रकार का भी है ॥१३५॥
आचारवृत्ति-मूलगुण विषयक प्रत्याख्यान और उत्तरगुण विषयक प्रत्याख्यान होता है जो कि आगे कहे जाने वाले भोजन के परित्याग रूप अनशन आदि के भेद से अनेक प्रकार का है। उन भेदों से भी यहाँ पर प्रकृत (प्रकरण) है, उसे कहा गया है । अथवा उस प्रत्याख्यायक साधु के इन त्याग रूप उपवास आदिकों में प्रयत्न करना चाहिए । यही प्रत्याख्यान क्षमणादि दस प्रकार का जानने योग्य है । ॥१३५॥
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