________________
आवश्यकनियुक्तिः
स्वद्रव्योत्सर्गस्तदेतत्सर्वं लोकानुवृत्तिविनयो लोकात्मीकरणाओं यथाऽयं विनयोंजलिकरणादिकः प्रयुज्यते तथाऽजलिकरणादिको योऽर्थनिमित्तं क्रियते सोऽर्थहेतुः ॥८१॥
तथाएमेव कामतंते भयविणओ चेव आणुपुवीए । पंचमओ खलु विणओ परूवणा तस्सिमा होदि ।।८२।।
एवमेव कामतन्त्रे भयविनयः चैव आनुपूर्व्या ।
पञ्चमः खलु विनयः प्ररूपणा तस्येवं भवति ॥८२॥ यथा लोकानुवृत्तिविनयो व्याख्यातस्तथैवं कामतन्त्रो भयार्थश्च भवति आनुपूर्व्या विशेषाभावात्, यः पुनः पंचमो विनयस्तस्येयं प्ररूपणा भवतीति ॥८२॥
दंसणणाणचरित्ते तवविणओ ओवचारिओ चेव । मोक्खसि एस विणओ पंचविहो होदि णायव्वो ।।८३।।
दर्शनज्ञानचारित्रे तपसि विनय: औपचारिकश्चैव । मोक्ष एष विनय: पञ्चविधो भवति ज्ञातव्यः ॥८३॥
दान देना, अपने द्रव्य का त्याग करना यह सब लोकानुवृत्ति विनय है, क्योंकि यह लोक को अपना करने के लिए अंजुलि जोड़ना आदि यथार्थ विनय किया जाता है । उसी प्रकार से जो अर्थ के निमित्त प्रयोजन के लिए अंजलि जोड़ना उपर्युक्त विनय किया जाता है वह अर्थनिमित्त विनय है ॥८१॥
गाथार्थ इसी प्रकार से कामतन्त्र में विनय करना कामतन्त्र विनय है और इसी क्रम से भय हेतु विनय करना भय विनय है । निश्चय ही पंचम जो विनय है उसकी यह-आगे प्ररूपणा होती है ॥८२॥
- आचारवृत्ति-जैसे लोकानवृत्ति विनय का व्याख्यान किया है, उसी प्रकार से काम के निमित्त विनय कामतन्त्र विनय है तथा वैसे ही क्रम से भय निमित्त विनय भयविनय है । इसमें कोई अन्तर नहीं है अर्थात् अभिप्राय मात्र का अन्तर है, क्रियाओं में कोई अन्तर नहीं है । अब जो पाँचवा मोक्षविनय है उसकी आगे प्ररूपण करते हैं ॥८२॥
गाथार्थ-दर्शन, ज्ञान, चारित्र और तप-विनय तथा औपचारिक विनययह पाँच प्रकार का मोक्षविनय जानना चाहिए ॥८३॥
१:
क ०र्थगतोनि० ।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org