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________________ ४४ स भावोद्योतो जिनवरेन्द्रैः पंचविधः पंचप्रकारः खलु स्फुटं, भणितः प्रतिपादितः । आभिनिबोधिक श्रुतावधिज्ञानमन:पर्ययकेवलमयो मतिश्रुतावधिमन:पर्ययकेवलज्ञानभेदेन पंचप्रकार इति ॥५३॥ आवश्यक निर्युक्तिः द्रव्यभावोद्योतयोः स्वरूपमाह— दव्वुज्जोवोजोवो पsिहण्णदि परिमिद िखेत्त ि। भावज्जोवोजोवो लोगालोगं पयासेदि ।।५४।। . द्रव्योद्योतः उद्योतः प्रतिहन्यते परिमिते क्षेत्रे । भावोद्योत उद्योतः लोकालोकं प्रकाशयति ॥५४॥ द्रव्योद्योतोय उद्योतः स प्रतिहन्यतेऽन्येन द्रव्येण परिमिते च क्षेत्रे वर्तते । पुनः भाव - उद्योत के भेद कहते हैं गाथार्थ — जिनवरदेव ने निश्चय से भावोद्योत पाँच प्रकार का कहा है । वह आभिनिबोधिक (मति), श्रुत, अवधि, मन:पर्यय और केवल - ये पाँच ज्ञान हैं- ऐसा जानना चाहिए ॥ ५३ ॥ १. आचारवृत्ति — मति, श्रुत, अवधि, मन:पर्यय और केवलज्ञान के भेद से वह भावोद्योत पाँच प्रकार का है - ऐसा श्री जिनेन्द्रदेव ने कहा है ' ॥५३॥ द्रव्यभाव उद्योत का स्वरूप कहते हैं गाथार्थ - द्रव्योद्योत रूप प्रकाश अन्य से बाधित होता है, परिमित क्षेत्र में रहता है और भावोद्योत प्रकाश, लोक- अलोक को प्रकाशित करता है ॥५४॥ आचारवृत्ति - जो द्रव्योद्योत का प्रकाश है वह अन्य द्रव्य के द्वारा नष्ट हो जाता है और सीमित क्षेत्र में रहता । किन्तु भावोद्योत रूप प्रकाश लोक और अलोक को प्रकाशित करता है, किसी के द्वारा नष्ट नहीं किया जा सकता है और न परिमित क्षेत्र में ही रहता है, क्योंकि वह अप्रतिघाती और सर्वगत है । अर्थात् यह गाथा फलटन से प्रकाशित प्रति में अधिक है— लोयालोयपयासं अक्खलियं णिम्मलं असंदिद्धं । जं गाणं अरहंता भावुज्जोओ त्ति वुच्चति ॥ अर्थात् जो ज्ञान लोकालोक को प्रकाशित करता है, कभी स्खलित नहीं होता है, निर्मल है, संशयरहित है, अरिहंतदेव ऐसे ज्ञान को भावोद्योत कहते हैं । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004237
Book TitleAavashyak Niryukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Jain, Anekant Jain
PublisherJin Foundation
Publication Year2009
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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