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आवश्यक नियुक्तिः
उद्योतः प्रकाश खलु द्विविधः स्फुटं ज्ञातव्यो द्रव्यभावभेदेन । द्रव्यसंयुक्तो भावसंयुक्तश्च । तत्र द्रव्योद्योतोऽग्निश्चन्द्रः सूर्यो मणिश्च । एवकारः प्रकारार्थः । एवंविधोऽन्योऽपि द्रव्योद्योतो ज्ञात्वा वक्तव्य इति ॥५१॥
भावोद्योतं निरूपयन्नाह -
भावज्जोवो णाणं जह भणियं सव्वभावदरिसीहिं । तस्स दु पओगकरणे भावुज्जोवोत्ति णादव्वो ।। ५२ ।। भावोद्योतो ज्ञानं यथा भणितं सर्वभावदर्शिभिः ।
तस्य तु उपयोगकरणे भावोद्योत इति ज्ञातव्यः ॥ ५२॥
भावोद्योतो नाम ज्ञानं यथा भणितं सर्वभावदर्शिभिः येन प्रकारेण सर्वपदार्थदर्शिभिर्ज्ञानमुक्तं तद्भावोद्योतः परमार्थोद्योतस्तथा ज्ञानस्योपयोगकरणात् स्वपरप्रकाशकत्वाद्भावोद्योत इति ज्ञातव्यः ॥ ५२ ॥
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पुनरपि भावोद्योतस्य भेदमाह–
पंचविहो खलु भणिओ भावुज्जोवो य जिणवरिंदेहिं । आभिणिबोहियसुद ओहिणाणमणकेवलं णेयं ।। ५३ ।।
पंचविधः खलु भणित: भावोद्योतश्च जिनवरेंद्रैः । आभिनिबोधिकश्रुतावधिज्ञानमन: केवलं ज्ञेयं ॥५३॥
आचारवृत्ति - उद्योत, प्रकाश स्पष्टरूप से द्रव्य और भाव के भेद से दो प्रकार का है । अर्थात् द्रव्यसंयुक्त और भावसंयुक्त उद्योत । उसमें अग्नि, उद्योत सूर्य, चन्द्रमा और मणि – ये द्रव्य - उद्योत हैं । इसी प्रकार के अन्य भी द्रव्यउद्योत जानकर कहना चाहिए । अर्थात् प्रकाशमान् पदार्थ को यहाँ द्रव्य-उद्योत कहा गया है ॥५१॥
भाव - उद्योत को कहते हैं
गाथार्थ-भाव- उद्योत ज्ञान है जैसा कि सर्वज्ञदेव के द्वारा कहा गया है । उसके उपयोग करने में भाव उद्योत है - ऐसा जानना चाहिए ॥ ५२ ॥
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आचारवृत्ति - जिस प्रकार से सर्व पदार्थ के देखने, जानने वाले सर्वज्ञदेव ने ज्ञान का कथन किया है वह भाव उद्योत है, वही परमार्थ उद्योत है । वह ज्ञान स्वपर का प्रकाशक होने से भाव उद्योत है - ऐसा जानना चाहिए । अर्थात्
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ज्ञान ही चेतन-अचेतन पदार्थों का प्रकाशक होने से सच्चा प्रकाश है ॥५२॥
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