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________________ वस्तु सदसदात्मक है: स्वद्रव्य, स्वक्षेत्र, स्वकाल एवं स्वभाव की अपेक्षा सब पदार्थ सत् हैं और पररूपादि (परद्रव्य, परकाल एवं परभाव) की अपेक्षा सभी पदार्थ असत् हैं । ७२ चाहे चेतन हो या अचेतन, इस नियम का कोई भी अपवाद नहीं है । अगर इस नियम को अस्वीकृत कर दिया जाये तो या तो सार संसार शून्य हो जायेगा या द्रव्य की सत्ता का कोई नियम नहीं रहेगा । वस्तु में वाच्यावाच्यत्व है: एक ही वस्तु में अनन्त धर्म पाये जाते हैं। इन अनन्त धर्मों में से जिस धर्म का प्रतिपादन किया जाये वह मुख्य और अन्य धर्म गौण कहे जाते हैं, ये ही शास्त्रीय भाषा में क्रमशः अर्पित और अनर्पित भी कहे जाते हैं । ७३ जब क्रम से स्वरूपादि चतुष्टयी की अपेक्षा से सत् तथा पररूपादि चतुष्टयी की अपेक्षा से असत् अर्पित होते हैं उस समय वस्तु कथंचित् उभयात्मक .(सदसदात्मक) होती है और जब कोई स्वरूपादि चतुष्टय तथा पररूपादि चतुष्टय के द्वारा वस्तु के सत्वादि धर्मों का एक साथ प्रतिपादन करना चाहता है तो ऐसा कोई शब्द नहीं मिलता जो एक ही शब्द में दोनों धर्मों का प्रतिपादन कर सकेऐसी अवस्था में वस्तु अवाच्य है । ७४ वस्तु में अस्तित्व - नास्तित्व है: ·1 अस्तित्व और नास्तित्व, ये आपस में अविनाभावी हैं । अस्तित्व के अभाव स्तित्व नहीं हैं और नास्तित्व के अभाव में अस्तित्व नहीं है । अविनाभाव अर्थात् एक संबन्ध, जो उन दो पदार्थों में पाया जाता है जिनमें से एक पदार्थ के • बिना दूसरा न रह सके । एक ही वस्तु में रहने वाला अस्तित्व विशेषण होने से प्रतिषेध्य (नास्तित्व) का अविनाभावी है, जैसे हेतु में विशेषण होने से साधर्म्य वैधर्म्य का अविनाभावी ७२. सदेवं सर्वं को व्यवतिष्ठते । आ.मी. १.१५ - ७३. अर्पितानर्पितसिद्धेः त. सू. । ५.३२ एवं स. सि. ५.३२.५८८ ७४. क्रमार्पिताद्वयाद्... शाक्तितः । आ.मी. १.१६ Jain Education International ५५ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004236
Book TitleDravya Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyutprabhashreejiji
PublisherBhaiji Prakashan
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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