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________________ ‘अनेकान्तवाद' अर्थात् भिन्न-भिन्न स्वभाव में ही “गुण सन्द्रावो द्रव्यं" एवं “द्रव्यं भव्ये"- ये दोनों लक्षण सिद्ध होते हैं। "- वैशेषिक धर्म और धर्मी को समवाय संबन्ध से जोड़ते हैं। यह समवाय द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य और विशेष पदार्थों में रहता है । समवाय संबन्ध के कारण ही सर्वथा भिन्न धर्म और धर्मी में धर्म-धर्मी का व्यवहार होता है ।२७ - जैन दर्शन में 'सत्' और 'द्रव्य' पर्यायवाची हैं, जबकि वैशेषिक ‘सत्ता' और 'द्रव्य' को अलग-अलग मानता है, क्योंकि वह (सत्ता) प्रत्येक द्रव्य में (आधेय रूप से) पायी जाती है। जैसे द्रव्यत्व नौ द्रव्यों में से प्रत्येक में रहता है। अतः द्रव्यत्व को द्रव्य नहीं कहा जात, परन्तु सामान्य-विशेषरूप (द्रव्य) कहा जाता है। इसी तरह ‘सत्ता' भी प्रत्येक द्रव्य में रहने के कारण द्रव्य नहीं अपितु 'सामान्य' कही जाती है।९ . - जैन दर्शन द्रव्य को सामान्य-विशेषात्मक मानता है, जबकि वैशेषिक दर्शन द्रव्यादि से विलक्षण होने के कारण 'विशेष' को पदार्थान्तर मानता है। प्रशस्तपाद के अनुसार अन्त्य में होने के कारण वे (विशेष) अन्त्य हैं तथा आश्रय के नियामक . हैं अतः विशेष हैं। ये विशेष नित्यद्रव्यों में रहते हैं।३१ ___ 'सामान्य' को भी वैशेषिक लोग ‘सत्ता' से भिन्न पदार्थ के रूप में स्वीकार करते हैं। यह सामान्य नित्य और व्यापक है। सामान्य के दो भेद हैं- पर और अपर। सामान्य द्रव्य, गुण और कर्म-इन तीन पदार्थों में रहता है। न्याय-वैशेषिक के सर्वथा भेदभाव का खंडन करते हुए आचार्य समन्तभद्र कहते हैं कि 'गुण और गुणी में, कार्य और कारण में तथा सामान्य और विशेष में २७. घटादीनां कपालादौ द्रव्येषु गुणकर्मणोः । तेषु जातेश्च संबंधः समवायः प्रकीर्तितः। -काारिकावली का: १२. मुक्तावली पृ.२३. २८. द्रव्यगुणकर्मभ्योऽर्थान्तरं सत्ता । वै.सू.१.२.४ २९. स्याद्वादमंजरी पृष्ठ ४९. ३०. अन्तेषु भवा अन्त्याः स्वाश्रयविशेषकत्वाद विशेषाः प्रशस्तपादभाष्य विशेष प्रकरण पृ.१६८ ३१. अन्स्यो नित्यद्रष्यवृत्तिः विशेषः परिकीर्तितः। - का. १०. ३२. सामान्यं द्विविधं प्रोक्तं.....परापरतयो उच्यते - का. ८.९. ४७ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004236
Book TitleDravya Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyutprabhashreejiji
PublisherBhaiji Prakashan
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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