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________________ प्रवचनसार की टीका में भी लगभग इसी से मिलती-जुलती व्याख्या है। वस्तु ऊर्ध्वता सामान्यरूप द्रव्य में, सहभावी विशेष स्वरूप गुणों में एवं क्रमभावी विशेष स्वरूप पर्यायों में उत्पाद-व्यय- ध्रौव्यमय है । ८६ जितने भी पदार्थ इस सृष्टि में हैं, वे सब सामान्य समुदायात्मक ( गुणसमुदायात्मक) और आयतसामान्य समुदायात्मक (पर्यायसमुदायात्मक) द्रव्य से रचित होने के कारण द्रव्यमय हैं । ७ उत्पादादि भिन्न भी अभिन्न भी: द्रव्य को हम त्रिलक्षणयुक्त सिद्ध कर आये हैं । यहाँ यह जिज्ञासा होना स्वाभाविक है कि द्रव्य के उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य परस्पर भिन्न हैं या अभिन्न ? दार्शनिकों ने इस प्रश्न की गम्भीरता को समझा और अपनी पैनी प्रतिभा से इस प्रश्न को निम्न प्रकार से समाहित किया । जैन दार्शनिक स्याद्वाद की नींव पर ही समस्त जिज्ञासाओं का समाधान खोजते हैं । उनके दृष्टिकोण में एकान्तवाद मिथ्या है। अतः उन्होंने वस्तु के स्वरूप को भी कथंचित् भिन्न एवं कथंचित् अभिन्न कहा है। सत् को त्रिलक्षणात्मक कहा। इससे यह स्पष्ट सिद्ध होता है कि इनमें परस्पर भिन्नता है । परन्तु ये एक वस्तु के उत्पाद - व्यय को दूसरी वस्तु में लेकर नहीं जा सकते, अतः अभिन्नता है। जैसे रूप, रस आदि के लक्षण अलग हैं, अत: इनमें भेद है, परन्तु ये परस्पर में सापेक्ष हैं, अतः अभिन्न भी हैं ।" न तो उत्पाद स्वतन्त्र है और न पदार्थ । इस प्रकार एक ही द्रव्य में भेद और अभेद, दोनों पाये जाते हैं। जो गुण है वह उत्पाद नहीं, जो उत्पाद है वह पर्याय नहीं, इद तीनों का संयुक्त स्वरूप ही अस्तित्व का सूचक है और प्रमाण का विषय होने से भेद और अभेद- दोनों ही वास्तविक हैं, काल्पनिक नहीं । गौण और प्रधान की अपेक्षा से भेद और अभेद- दोनों अविरोधी हैं । " निवर्तितनिवृत्तिमच्च - प्र. सा.त. प्र. १०. ८६. बस्तु पुनरूर्ध्वतासामान्यलक्षणे ८७. इह खलु यः कश्चन परिच्छिद्यमान..... निर्वृत्तत्वाद्द्रव्यमयः - प्र.सा.प्र. ९३. ८८. ननूत्पादादयः परस्परं भिद्यते - अन्योयापेक्षणामुत्पादादीनां वस्तूनि पतिपतुत्तत्वं - षड्द. समु. टी. ५७. २५८ ८९. प्रमाणगोचरौ संतौ-गुणमुख्यविवक्षया- आ.मी. २.२६ Jain Education International ३९ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004236
Book TitleDravya Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyutprabhashreejiji
PublisherBhaiji Prakashan
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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