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________________ अगुरुलघुत्व इत्यादि को सामान्य; एवं गतिनिमित्तता, स्थितिकारणत्व, अवगाहनत्व, वर्तनाय तनुत्व, रूपादिमत्व एवं चेतनत्व को विशेष गुण कहा है। ३९ पर्यायों के प्रकार: प्रत्येक वस्तु अनंतधर्मात्मक होती है ।" सहभावी धर्म को गुण और क्रमभावी धर्म को पर्याय कहते हैं । यदि वस्तु में हम अनंतधर्मों को स्वीकार नहीं करते हैं, तो वस्तु की सिद्धि नहीं होती है, अतः वस्तु अनंतधर्मात्मक ही माननी चाहिए ।" पर्याय के दो प्रकार हैं- अर्थपर्याय एवं व्यंजनपर्याय । भेदों की परम्परा में जितना सदृश परिणाम प्रवाह किसी भी एक शब्द के लिए वाच्य बन कर प्रयुक्त होता है, वह प्रवाह व्यंजनपर्याय कहलाता है । और उस परम्परा में जो भेद अंतिम और अविभाज्य है वह अर्थपर्याय कहलाता है। जैसे चेतन पदार्थ का सामान्य रूप जीवत्व है । काल, धर्म आदि के कारण उसमें उपाधिकृत संसारित्व, मनुष्यत्व, पुरुषत्व, बालत्व आदि अनन्त भेदों वाली अनेक परम्पराएँ हैं। उन परम्पराओं में निरंतर पुरुष रूप समान प्रतीति का विषय और एक 'पुरुष' शब्द का प्रतिपाद्य जो सदृशपर्याय प्रवाह है वह तो व्यञ्जन पर्याय है, और पुरुषरूप में सदृशप्रवाह के अंतर्गत दूसरे बाल, युवा आदि जो भेद हैं, वे अर्थपर्याय हैं । ४२ जन्म से मृत्यु पर्यंत पुरुष के लिए जो 'पुरुष' संबोधन दिया जाता है, वह व्यंजन पर्याय का उदाहरण है। उस पुरुष के बाल, युवा आदि अंश अर्थपर्याय के उदाहरण हैं । यहाँ अंश का अर्थ 'पर्याय' है । व्यंजन पर्याय की अपेक्षा से देखने वाले को 'पुरुष' निर्विकल्प या अभिन्न रूप में दिखता है और बचपन आदि विकल्प युक्त देखने पर वही (पुरुष) - ३९. प्र. सा. ता. प्र. पृ. ९५. ४०. अनंतकालस्त्रिकालषियत्वाद..... तदनंतधर्मात्मकम् - स्याद्वाद २२.२०० ४१. अनंतधर्मात्मकमेव सत्वमसूपपादम् अन्यययो २२. ४२. सन्मतितर्क १.३० पर प. सुखलालजी एवं बेचरदास जी का विवेचन । ४३. पुरिसमि पुरिससद्दी.... बहुवियप्पा - स. त. १.३२ Jain Education International २९ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004236
Book TitleDravya Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyutprabhashreejiji
PublisherBhaiji Prakashan
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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