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वही द्रव्य है ।१३ . द्रव्य का लक्षण-गुण पर्याययुक्त है:___ गुण और पर्याय युक्त को ही 'द्रव्य' संज्ञा से अभिहित किया है। नियमसार में भी द्रव्य की यही व्याख्या है। इसी व्याख्या से मिलती जुलती व्याख्या प्रवचनसार एवं न्यायबिन्दु (जैन) में उपलब्ध होती है ।१६ गुण और पर्याय के साथ सत् जिसे द्रव्य कहते हैं, का तन्मयत्व है ।१७ । ...
द्रव्य, गुण और पर्याय-ये तीनों एक साथ पाये जाते हैं; इन तीनों में सह अस्तित्व है; तीनों में से एक भी विभक्त नहीं होता । द्रव्य का अभाव गुण का भी अभाव कर देगा, और गुण के अभाव में द्रव्य का भी अस्तित्व नहीं होगा; द्रव्य
और गुण अव्यतिरिक्त हैं। इसी प्रकार से पर्याय के अभाव में द्रव्य नहीं हो सकता और द्रव्य के अभाव में पर्याय नहीं; द्रव्य और पर्याय भी अनन्यभूत हैं।१९ जो अन्यवी हैं, वे गुण हैं और जो व्यतिरेकी हैं, वे पर्याय हैं।" -- गुण और पर्याय को और अधिक स्पष्ट करते हुए कहते हैं-द्रव्य में भेद करने वाले को गुण (अन्वयी) और द्रव्य के विकार को पर्याय कहते हैं।२१ .. १... गुण और पर्याय को उदाहरण सहित इस प्रकार समझाया है-“ज्ञान आदि गुणों द्वारा ही 'जीव' अजीव से भिन्न प्रतीत होता है । जीव में घट ज्ञान, पट ज्ञान, क्रोध, मान आदि पाये जाते हैं। वे जीव द्रव्य की पर्यायें हैं।२२ .. - गुण और पर्याय से युक्त समूह को तो द्रव्य सभी कहते हैं। परन्तु कहीं
१३. दवियदि गच्छदि....भूदंतु सत्तादी - पं.का. ९ १४. दव्वं सल्लक्खणयं.... भण्णंति सव्वण्हू - पं. का. १० १५. “गुणपर्यायवद् द्रव्यम" - त.सू. ५.३८ १६. नानागुणपर्यायैः संयुक्ताः - नि.सा. ९. १७.प्र.सा. ९५, न्यायबि. १.११५. ४२८ १८. जेसिं अत्थि.....विविहहिं-पं. का. १०. १९. दव्वेण विणा हवदि तम्हा-पं. का. १३. २०. पज्जयविजुदं.....अणण्णभूदं -पं. का. १२. २१. अन्वयिनोगुणा व्यतिरेकिणः पर्यायाः-स. सि. ५.३८.६००.
२२. गुण इदि दव्वविहाणं....."अजुपदसिद्ध हवे णिच्चं" -सं. सि. पृ. २३७ पर उद्धृत. ..२३. द्रव्यं द्रव्यांतराद् येन विशिष्यते स गुणः, ज्ञानादयो जीवस्य गुणाः.....तेषां विकारा.... .... घटज्ञानं, पटज्ञानं, क्रोधो....इत्येवमादयेः - स. सि. ५.३८.६०० : ....
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