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________________ • काल द्रव्य। • काल का लक्षण (क) वर्तना क्या है? (ख) परिणाम क्या है ? (ग) क्रिया क्या है? (घ) परत्व व अपरत्व (ड) परिणाम के संबंध में कुछ तर्क । वर्तना और परिणाम में अन्तर । काल अखण्ड प्रदेशी नहीं है। .काल अनन्त समय युक्त है। .काल के प्रकार। .काल का उपकार । • क्रिया में सहायक काल है। • व्यवहार के भेद। • निश्चय काल का लक्षण। • व्यवहार और निश्चय काल में अन्तर। .कालचक्र की अवधारणा । काल के ज्ञान की आवश्यकता। • वैशेषिक दर्शन में काल। • सांख्य और काल । • पुद्गल का लक्षण। • पुद्गल के भेद। • परमाणु का स्वभाव चतुष्टय, • पुद्गल के लक्षण, • पुद्गल के भेदः (क) स्कन्ध (ख) स्कन्धदेश (ग) प्रदेश (घ) परमाणु। • पुद्गल के पर्यायः (क) शुद्ध (ख) बन्ध (ग) सूक्ष्म (घ) स्थूल (ङ) संस्थान (च) भेद (छ) अन्धकार (ज) छाया (झ) आतप (ब) उद्योत। • पुद्गल के छह भेद। • पुगल परिणमन । • पुद्गल का स्वभाव-चतुष्टय । • पुद्गल के उपकार । • जैनदर्शन का लक्ष्य। ५. उपसंहार २३७-२५४ . ६. संन्दर्भ - ग्रन्थ सूची २५५-२६९ ७. हमारे प्रकाशन २७०-२७३ IIX. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004236
Book TitleDravya Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyutprabhashreejiji
PublisherBhaiji Prakashan
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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