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तर्क से भी इस बात की सिद्धि हो सकती है। प्रत्येक पदार्थ में चारों ही गुण पाये जाते हैं, चाहे वह पृथ्वी हो या जल । यदि ऐसा नहीं होता तो पृथ्वी को विज्ञान द्वारा जल बना दिये जाने पर उसमें से गंध गुण कहाँ जाता है ? और जल को पृथ्वी बनाने पर उसमें जल गुण कहाँ से आता है? क्योंकि यह तो निर्विवाद है कि किसी में किसी प्रकार का गुणोत्पाद नहीं किया जा सकता । अतः प्रत्येक पुद्गल स्कन्ध चारों गुण मानने ही होंगे ।
वास्तव में कोई भी पुद्गल ऐसा नहीं है जो रूप, रस, गन्ध और स्पर्श रहित हो । यह अलग बात है कि कोई गुण किसी में व्यक्त है किसी में अव्यक्त ।'
यह विवेचन दो नय की अपेक्षा से चलता है । भगवतीसूत्र में गुड़ और भ्रमर के उदाहरण द्वारा यह विवेचन स्पष्ट किया गया है । व्यवहार दृष्टि से गुड़ मीठा है, परन्तु निश्चय नय की दृष्टि से गुड़ पाँच वर्ण, दो गन्ध, पाँच रस और आठ स्पर्श वाला होता है । भ्रमर काला है, तोते की पाँख हरी है, मजीठ लाल है, हल्दी पीली है, शंख सफेद है और पटवास (कपड़े में सुगन्ध देने वाली पत्ती) सुगन्धित है। मृतदेह दुर्गंध युक्त है, नीम कड़वा है, सौंठ तीखी है, कपित्थ कसैला है, इमली खट्टी है आदि । परन्तु ये सब व्यक्त गुण हैं और व्यवहार दृष्टि से है, परन्तु निश्चय दृष्टि से तो पाँचों वर्ण, दो गन्ध, पाँच रस, आठ स्पर्श सब में होते ही हैं । ५२ पुद्गल के भेद
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पुद्गल के चार भेद होते हैं। या इसे यों भी कह सकते हैं कि पुगल के भेदसंघात की क्रिया चार प्रकार से होती है - स्कन्ध, स्कन्धदेश, प्रदेश और परमाणु । ५३
१. स्कन्धः - अनेक परमाणुओं के पिण्ड को स्कन्ध कहते हैं ।
२. स्कन्धदेश :- स्कन्ध के किसी कल्पित भाग को स्कन्धदेश कहते हैं । ३. प्रदेशः- स्कन्ध के निरंश अंश (अविभाज्य अंश) को प्रदेश कहते हैं । ४. परमाणुः - स्कन्ध से पृथक् हुए निरंश भाग को परमाण कहते हैं । ५४
५२. भगवती १८.६.१.५
५३. उत्तराध्ययन ३६.१० एवं पंचास्तिकाय ७४
५४. पंचास्तिकाय ७५
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