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द्रव्य एवं सृष्टि। • बौद्ध धर्मानुसार द्रव्य एवं सृष्टि । • सांख्य दर्शन के अनुसार द्रव्य एवं सृष्टि। • चार्वाक मत में द्रव्य एवं सृष्टि। • जैनदर्शन की द्रव्य एवं सृष्टि के सम्बन्ध में मान्यता ।
२. जैन परम्परामान्य द्रव्य का लक्षण
२३-६६ • जैन परम्परा में सत् का लक्षण। • द्रव्य लक्षण गुण पर्याय युक्त है। •सहभावी और क्रमभावी की अपेक्षा गुण पर्याय। • वस्तु अनन्त धर्मात्मक है। द्रव्य त्रैकालिक है। • अस्तित्व की अनिवार्यता परिणमन है। . ऊर्ध्वता एवं तिर्यक् की अपेक्षा द्रव्य, उत्पादादि से भिन्न भी है। • द्रव्य में ऐकान्तिक प्रतिपादन के दूषण। • द्रव्य-गुण पर्याय में एकान्त भेद नहीं। • द्रव्य, गुण
और पर्याय में एकान्त अभेद भी नहीं। • जैनदर्शन समन्वयवादी है। उत्पाद, व्यय एवं ध्रौव्य में काल की भिन्नता-अभिन्नता। • सभी द्रव्य स्वतन्त्र हैं। सत् सप्रतिपक्ष है- (सद्-असद्, वाच्यावाच्य, अस्तित्व-नास्तित्व, सामान्य-विशेष) सद्-असद्-न्याय वैशेषिक, भेद-अभेद वेदान्त व सामान्य कुमारिल के अनुसार। • नय का स्वरूप और उसकी आवश्यकता। • षड्द्रव्यों का विभाजन : चेतन व अचेतन की अपेक्षा से मूर्त व अमूर्त की अपेक्षा से, एक व अनेक की अपेक्षा से, परिणामी व नित्य की अपेक्षा से, सप्रदेशी व अप्रदेशी की अपेक्षा से, क्षेत्रवान् एवं अक्षेत्रवान् की अपेक्षा से, सर्वगत व असर्वगत की अपेक्षा से, कारण व अकारण की अपेक्षा से, कर्ता व भोक्ता की अपेक्षा से।
३. जैनदर्शन के अनुसार आत्मा
६७-१५५
• आत्मा शब्द की व्युत्पत्ति । आत्मा के अस्तित्व की सिद्धि । • आत्मा प्रमाण सिद्ध है। जिनभद्रसूरि के अनुसार आत्मसिद्धि । विभिन्न आचार्यों के अनुसार आत्मा की सिद्धि। • आत्मा और उपनिषद् । • उपनिषद् और आत्मस्वरूप की विभिन्नता। • देहात्मवाद। • प्राणात्मवाद। • मनोमय आत्मा। . प्रज्ञा विज्ञानात्मा। • चैतन्यात्मा। • न्याय-वैशेषिक दर्शन में आत्मा। • बौद्ध दर्शन का अनात्मवाद। • चार्वाक दर्शन में आत्मा।
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