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जीव और अजीव दोनों कहा है।५९ ___पंचास्तिकाय में कुन्दकुन्दाचार्य ने काल की दूसरी विचारधारा को ही पुष्ट किया है। काल परिणाम से उत्पन्न होता है और परिणाम द्रव्यकाल से उत्पन्न होता है। काल क्षणभंगुर भी है और नित्य भी।६०
इसे अमृतचन्द्राचार्य ने विशेष स्पष्ट किया है-व्यवहारकाल जीव और पुदल के द्वारा स्पष्ट होता है और निश्चयकाल जीव पुद्गलों के परिणाम की अन्यथा अनुपपत्ति द्वारा (जीव और पुद्गल के परिणाम अन्यथा नहीं बन सकते इसलिए) निश्चित होता है।
काल नित्य और क्षणिक क्यों और कैसे हैं? इसे भी कुन्दकुन्दाचार्य ने स्पष्ट किया है- 'काल' यह कथन सद्भाव का प्रेरक है, अतः नित्य है (यह निश्चयकाल की अपेक्षा से है)। उत्पन्नध्वंसी व्यवहारकाल (यद्यपि क्षणिक है, फिर भी) प्रवाह अपेक्षा दीर्घस्थिति-युक्त भी कहा जाता है ।६१
कुन्दकुन्दाचार्य ने अगले श्लोक में धर्म, अधर्म, आकाश, पुद्गल और जीव की तरह काल को भी द्रव्य तो माना है, परन्तु काय नहीं।६२ आचार्य उमा स्वाति ने यद्यपि अजीव द्रव्यों के अन्तर्गत काल को नहीं गिनाया था, पर आगे जाकर उन्होंने सूत्र में 'च' शब्द का प्रयोग करते हुए काल को भी द्रव्य के रूप में मान्यता दे दी।६३ प्रवचनसार में कुन्दकुन्दाचार्य ने स्पष्ट किया है कि एक समय में उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य काल में सदा पाये जाते हैं। अतः कालाणु का अपना स्वतन्त्र अस्तित्व है।६४
भाष्यकार अकलंक ने 'काल' “द्रव्य क्यों है?" इसका कारण भी बता दिया है। “उत्पाद-व्यय-ध्रौव्ययुक्तं सत्"और “गुणपर्यायवद्रव्यं"-इन लक्षणों से युक्त होने से आकाश आदि की तरह काल भी द्रव्य है। काल में ध्रौव्य तो ५९. ठाणांग २.३८७ ६०. पंचास्तिकाय वृत्ति १०० ६१. पं. का. १०१ ६२. पं. का. १०२ ६३. त.सू. ५.१६ ६४. प्रवचनसार १४३
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