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________________ लोक का परिमाप:- अब हम यह समझें कि ‘रज्जु' का माप क्या हैं? क्योंकि यह भी जैनदर्शन का अपना विशिष्ट पारिभाषिक शब्द है । ‘रज्जु' से तात्पर्य रस्सी नहीं है । अपितु तीन करोड़ इक्यासी लाख सत्ताईस हजार नौ सौ सत्तर मण वजन का एक भार और ऐसे हजार भार का अर्थात् अड़तीस अरब बारह करोड़ उन्यासी लाख सत्तर हजार मण वजन का एक लोहे का गोला छः माह, छः दिन, छः प्रहर और छः घड़ी में जितनी दूरी तय करे, उतनी दूरी को एक रज्जु कहते हैं। लोकसंस्थान के प्रकार : जैन साहित्य में जिस प्रकार से लोक रचना का विश्लेषण किया गया है उसी प्रकार उसके आकार का भी विवेचन किया गया है। __अधोलोक का संस्थान किस प्रकार का है? गौतम स्वामी के इस प्रश्न पर भगवान् महावीर ने कहा- अधोलोक क्षेत्रफल का संस्थान तिपाई के समान है। तिर्यग् लोक क्षेत्रलोक का आकार झालर के आकार का है। अधोलोक के क्षेत्रफल का आकार मृदंग के समान है ।११ ___ लोक का संस्थान सकोरे के आकार का है। वह नीचे से चौड़ा, ऊपर से मृदंग जैसा है। प्रशमरति में उमास्वाति ने भी लोक की आकृति इसी प्रकार से बतायी है । अधोलोक का आंकार सकोरे के समान (ऊपर संक्षिप्त नीचे विशाल), तिर्यक्लोक आकार थाली के जैसा है एवं ऊध्वलोक का आकार खड़े रखे गये सकोरे के ऊपर उलटे रखे गये सकोरे के जैसा है।१२ - अलोक का संस्थान पोले गोले के समान है ।१३ भगवतीसूत्र में व्याख्याकार ने लोक का प्रमाण इस प्रकार से बताया है- सुमेरु पर्वत के नीचे अष्टप्रदेशी रुचक है। उसके निचले प्रतर के नीचे नौ सौ योजन तक तिर्यग्लोक है। उसके आगे अधःस्थित होने से अधोलोक है, जो सात रज्जु से कुछ अधिक है तथा . रुचक प्रदेश की अपेक्षा नीचे और ऊपर नौ सौ-नौ सौ योजन तिरछा होने से १०. गणितानुयोग संपादकीय पृ. ६ ११. भगवती ११.१०.१ एवं वही ७.१.५ १२. प्रशमरति प्रकरण २.११ १३. भगवती ११.१०.११ १८१ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004236
Book TitleDravya Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyutprabhashreejiji
PublisherBhaiji Prakashan
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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