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________________ अगंध, अरस, अस्पर्श, अरूप, अजीव, शाश्वत, अवस्थित तथा लोक का एक अंशभूत द्रव्य है। द्रव्य की अपेक्षा एक द्रव्य है, क्षेत्र की अपेक्षा लोक तथा आलोक प्रमाण है। काल की अपेक्षा अतीत, अनागत और वर्तमान तीनों में शाश्वत है। भाव की अपेक्षा अवर्ण, अगन्ध, अरस और अस्पर्श है । गुण की अपेक्षा अवगाहन गुण वाला है।४६ ___ उत्तराध्ययन में भी आकाश के अवगाहन गुण को ही पुष्ट किया है। - यहाँ प्रबुद्ध वर्ग में एक समस्या उभर सकती है कि हम आकाश कहें किसे? जो हमें नीला, पीला दिखायी देता है, वह आकाश है? परन्तु नीला-पीला तो आकाश हो नहीं सकता, क्योंकि आकाशास्तिकाय का लक्षण तो अवर्ण है तथा अमूर्त है । वह तो इन्द्रियों से जाना नहीं जा सकता। यह सर्दी/गर्मी जो कुछ हमें प्रतीत होती है वह वायु की है, आकाश की नहीं। यह वायु आकाश में व्याप्त है। गंध चाहे वह सुगन्ध हो या दुर्गन्ध आदि पुद्गल स्कन्धों की है, आकाश की नहीं। नीला-पीला दिखता है ये भी वायुमंडल में तैरने वाले क्षुद्र अणुओं के रंग हैं और सूर्य की किरणों को प्राप्त करके इस रंग में रंग जाते हैं। वैशेषिक शब्द को आकाश का गुण मानते हैं और इसे सिद्ध करने के प्रयास भी करते हैं, परन्तु शब्द आकाश का गुण न होकर पौगलिक है। क्योंकि वैशेषिकों ने जो हेतु उपस्थित किये हैं, वे असिद्ध हैं।" शब्द आकाश का गुण न होकर पुद्गल का गुण है; क्योंकि अनेक पुद्गलों के टकराने से शब्द उत्पन्न होता है और वायुमण्डल में एक कंपन विशेष उत्पन्न करता है। - हमारे चारों और जो भी खाली जगह (Vaccum) दिखायी देती है, वही आकाश है, जिसे अंग्रेजी भाषा में Space कहा जाता है । Sky और में Space ४६. ठाणांग ५.१७२ एवं भगवती २.१०.४ ४७. भायणं सव्वद्रव्वाणं, नहं ओगाह लक्खणं, - उत्तराध्ययन २८.९ ४८. वैशेषिक सूत्र २२.१.२७., २९-३२ एवं तत्र आकाशस्य गुणाअशब्द संख्यापरिमाण पृथक्त्वं संयोग विभागा.....प्रशस्त - भा.पृ. २३-२५ ४९. स्याद्वादमंजरी १४ पृ. १२७-१२८ १६९ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004236
Book TitleDravya Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyutprabhashreejiji
PublisherBhaiji Prakashan
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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