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कहलाते हैं, इन्द्रिय आदि अपूर्ण हो तो भी शरीर की पूर्णता से पर्याप्तक कहलायेंगे। अपर्याप्तक जीव शरीर पर्याप्त पूर्ण किये बिना ही मर जाते हैं। एक श्वास में १८ जन्म मरण करने वाले जीव अपर्याप्तक कहलाते हैं ।३८१ आहार पर्याप्तिः- मृत्यु के बाद शरीर के योग्य पुद्गलवर्गणा ग्रहण करना आहार कहलाता है। उस आहार को रसरूप परिणमन करने की शक्ति की पूर्णता को आहार पर्याप्ति कहते हैं ।३८२ शरीर पर्याप्ति:- जिसके पूर्ण होने पर आहार पर्याप्ति के द्वारा परिणत खरभाग हड्डी आदि कठोर अवयवों में, रस खूना वसा और वीर्य आदि तरल अवयवों में परिणत हो जाता है, उसे शरीर पर्याप्ति कहते हैं । ३८३ इन्द्रिय पर्याप्ति:- दर्शनावरण और वीर्यान्तराय कर्म के क्षयोपशम योग्य देश में स्थित रूपादि से युक्त पदार्थों को ग्रहण करने वाली शक्ति की उत्पत्ति के कारणभूत पुद्गलप्रचय की प्राप्ति इन्द्रिय पर्याप्ति कहलाती है।३८४ अथवा “खून, मांस, मेद, मजा, अस्थि और वीर्य-इन सात धातुओं से स्पर्श और रसन आदि द्रव्येन्द्रियों को बनाने की जो शक्ति है, उसे इन्द्रिय पर्याप्ति कहते हैं।३८५ श्वासोच्छ्वास पर्याप्ति:- आहार वर्गणा से ग्रहण किये पुद्गल स्कन्धों को उच्छ्वास-निःश्वास रूप में परिणत करने वाली शक्ति को श्वासोच्छ्वास पर्याप्ति कहते हैं ।३८६ भाषा पर्याप्ति:- जिस शक्ति की पूर्णता से वचन रूप पुद्गल स्कन्ध वचनों में परिणमित होते हैं, वह भाषा पर्याप्ति कहलाती है ।३८७ मनःपर्याप्ति:- जिस शक्ति के पूर्ण होने से द्रव्यमन योग्य पुद्गल स्कन्ध द्रव्यमन के रूप में परिणत हो जाते हैं, उसे मनःपर्याप्ति कहते हैं ।२८८ ३८१. उदये डु अपुण्णस्स.....अपजत्तगो सो दु-गोम्मटसार (जीवकाण्ड) २२ ३८२. गोम्मटसार (जीवकाण्ड) जीवतत्त्वदीपिका ११८ ३८३. गोम्मटसार (जीवकाण्ड) जीवतत्त्वप्रदीपिका ११९ ३८४. वही ३८५. पैंतीस बोल विवरण पृ. ८ ३८६. वही पृ. ८.९ एवं धवला १.१.३४ ३८७. वही ३८८. वही
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