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जीव के शरीरों की सहस्थिति (किसके कितने शरीर होते हैं):___ एक शरीर को छोड़कर दूसरे शरीर को ग्रहण करने के पूर्व तक एक जीव के केवल दो शरीर होते हैं-तैजस और कार्मण । ये दोनों अप्रतिघाती होते हैं, अत्यन्त सूक्ष्म होते हैं, और अनादिकाल से संसारी जीव के साथ सम्बद्ध हैं। जिन जीवों के जन्म गर्भ से या सम्मूर्छन से होते हैं, उनके शरीर औदारिक होते हैं। इसलिए,
औदारिक शरीर के साथ तैजस और कार्मण शरीर मिलने पर इनके तीन शरीर होते हैं।
नारकियों के एवं देवों के औपपातिक जन्म होता है। औपपातिक शरीर वैक्रियिक होता है, इसलिए नारकियों में स्वभाविक रुप से वैक्रिय, तैजस और कार्मण-ये तीन शरीर होते हैं। __विक्रियाऋद्धिकारी के औदारिक शरीर के आश्रय से शरीर में विक्रिया करने की शक्ति होती है। विक्रिया करने तक अधिकतम चार शरीर होते हैं- औदारिक, तैजस, कार्मण और वैक्रियिकआहारक। .. प्रमत्तसंयत मुनि के औदारिक शरीर के आश्रय से आहारक शरीर की रचना होती है, इसलिए आहारक शरीर की उपस्थिति तक प्रमत्तसंयत मुनि के अधिकतम चार शरीर होते हैं-औदारिक, तैजस, कार्मण और आहारक।
आत्मा और चारित्र :
चारित्र परिणाम पाँच प्रकार का होता है- (१) सामायिक चारित्र, (२) छेदोपस्थापनीय चारित्र, (३) परिहारविशुद्धि चारित्र, (४) सूक्ष्मसंपराय चारित्र, (५) यथाख्यात चारित्र ।३३२ (१) सामायिक :- राग-द्वेष की विषमता को मिटाकार शत्रु-मित्र के प्रति समभाव को धारण करना सामायिक है। इससे ज्ञान, ध्यान और संयम का लाभ होता है। इसकी जघन्य अवधि ४८ मिनट एवं उत्कृष्ट अवधि छह माह की होती है।३३३ सामायिक दो प्रकार की है-नियतकाल सामायिक स्वाध्याय आदि और
३३२. प्रज्ञापना १३.९३६ त.सू. ९.८ तथा ठाणांग ५.१३९ ३३३. पैंतीस बोल वितरण पृ. ५१.५२
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