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के स्पर्शन इन्द्रिय, काय, श्वासोच्छ्वास और आयु ये चार प्राण पाये जाते हैं। स- जीवों के भेद
:
द्रव्येन्द्रियों के विकास की अपेक्षा त्रस जीव चार प्रकार के हैं- द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, एवं पंचेन्द्रिय । २७८ जिनके स्पर्शन और रसनेन्द्रिय हो वे जीव द्वीन्द्रिय होते हैं । इनमें छह प्राण होते हैं - स्पर्शन, काय (बल), आयु, श्वासोच्छ्वास, रसना और वचन (बल) । त्रीन्द्रिय के प्राण इन्द्रिय बढ़ने से सात प्राण होते हैं । चक्षुरिन्द्रिय मिलने से चतुरिन्द्रिय के आठ प्राण, और श्रोत्रेन्द्रिय मिलने से असंज्ञी पंचेन्द्रिय के नौ प्राण होते हैं, एवं मनोबल के मिलाने से संज्ञी पंचेन्द्रिय के दस प्राण होते हैं।
२७.९
स जीवों के उदाहरण :
२८०
कृमि, सीप, शंख, गंडोला, अरिष्ट, चन्दनक, शंबुक आदि द्वीन्द्रिय जीव हैं। जूँ, लीख, खटमल, चींटी, इंद्रगोप, दीमक, झींगर, इल्ली आदि त्रीन्द्रिय जीव हैं । २८९ मकड़ी, पतंगा, डांस, भौंरा, मधुमक्खी, गोमक्खी, मच्छर, टिड्डी, ततैया, आदि चतुरिन्द्रिय जीव कहलाते हैं । २८२ तिर्यंच, मनुष्य, देव और नारक पंचेन्द्रिय संसार समापन्नक ये पंचेन्द्रिय जीव हैं । २८३
पंचेन्द्रिय जीवों का वर्गीकरण :
समस्त पंचेन्द्रिय जीवराशि को चार भेदों में वर्गीकृत किया है। ये भेद संसारी पंचेन्द्रिय की अपेक्षा से हैं - १. तिर्यंच, २. मनुष्य, ३. देव, ४. नारक और ५. पंचेन्द्रिय संसार समापन्नक । २८४९
२७७. स. सि. २.१३.२८६
• २७८. त.सू. २.१४
२७९. स.सि. २.१४.२८८
२८०. जीवविचार १५
२८१: वही १६, १७
२८२. जीवविचार १८
२८३. प्रज्ञापना १.५९ एवं ठाणांग ४.६०८ २८४. वही
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