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________________ जब मालपुरा जाना हुआ तब उन्होंने गुरु चरणों में संकल्प किया कि इसी वर्ष उन्हें शोध प्रबन्ध प्रस्तुत करना है। जिस तेजी से उनकी गाड़ी रुकी थी, उसी अनुपात में बल्कि उससे भी ज्यादा तेजी से उनकी गति तीव्रतम होती चली गई। सतत् परिश्रम करके उन्होंने मालपुरा और जयपुर प्रवास के दौरान अपना शोध प्रबन्ध पूर्ण कर लिया। स्वयं स्व.डॉ.नरेन्द्र भानावत एवं जैनदर्शन के प्रमुख विद्वान् डॉ. के. सी. सोगानी उनकी गति से आश्चर्य चकित थे। जितनी अल्पावधि में उन्होंने अपना संकल्प पूर्ण किया, उसके लिए स्वयं डॉ. सोगानी के निष्कर्ष थे कि इस कार्य में उन्हें कोई दैवीय सहयोग उपलब्ध हो रहा है। और मेरा भी यही चिन्तनफल था कि उन्होंने मालपुरा के सम्राट दादा कुशलसूरि की धरती पर जिस कार्य का शुभारम्भ किया है, निःसंदेह उसकी पूर्णता में अवश्य ही गुरुदेव सहयोग कर रहे हैं। मेरा अपना अनुभव है कि जब वे मालपुरा में थी तब पुस्तकालय के अभाव में सन्दर्भ ग्रन्थों के न होने से परेशान थी, उस समय चूँकि आसपास का सारा वातावरण व परिवेश अपरिचित था, अतः गुरुचरणों में ही निवेदन किया कि मुझे सहयोग करें और तभी उन्हें आश्चर्यजनक रूप से कुछ पुस्तकें स्थानीय दिगम्बर जैन मंदिर से अनायास ही प्राप्त हो गईं। शोध-प्रबन्ध प्रस्तुत होने के बाद वे विहार कर सांचोर आ गए और शोधप्रबन्ध परीक्षण हेतु प्रमुख विद्वानों के पास गुजरात विश्वविद्यालय ने भेज दिया; परन्तु मौखिकी परीक्षा (वायवा ) संभव नहीं हो पा रहा थी। बहुधा तैयारियाँ होने पर भी या तो डॉ. के. सी. सोगानी की परिस्थितियाँ बाधक बन जाती अथवा डॉ. वाई. एस. शास्त्री की अत्यधिक व्यस्तता के कारण वायवा अन्तिम समय पर रद्द हो जाता। अन्त में खरतरगच्छ महासंघ के अध्यक्ष आदरणीय भाईजी श्री हरखचंदजी नाहटा ने यह उत्तरदायित्व अपने सिर पर लिया और जोधपुर में १३ अप्रैल ९४ को बड़ी उमंगों के साथ उनका वायवा संपन्न हो गया। अगर यह कहूँ तो ज्यादा यथार्थ के निकट होगा कि उनकी व्यावाहारिक शिक्षा का प्रारम्भ मेरे सहयोग से हुआ तो उसकी परिसमाप्ति श्री भाई जी के सहयोग से संपन्न हुई। वह पल आज भी मेरी स्मृति में है, जब वे वायवा संपन्न कर डॉक्टर के रूप में बाहर आए, मेरा रोम-रोम प्रसन्नता से झूम रहा था। आनन्द आँसू के रूप में छलक उठा। VIII Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004236
Book TitleDravya Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyutprabhashreejiji
PublisherBhaiji Prakashan
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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