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________________ रहती हैं। उनकी गति, तने, पुष्प, पत्रादि की वृद्धि के रूप में या संवेदन से होने वाले हलन चलन के रूप में होती है। किन्तु कुछ पौधों में यह विशेष रूप से दिखायी देता है-छुईमुई के पौधे को छूते ही उसमें हलन चलन प्रारंभ हो जाता है, सूर्यमुखी सदैव सूर्य की ओर ही मुँह रखता है । सनड्रयू और वीनस फ्लाइ-ट्रेप के पौधे अपने फूलों पर कीट-पतंगों के बैठते ही अपने नागपाश में ले लेते हैं। यह क्रिया एक सेकिण्ड के शतांश में ही हो जाती है ।२६२ शारीरिक गठन (Organisation) :- जो वनस्पति एक ही जाति के हैं, उनका निश्चित आकार-प्रकार रूप रंग होता है। एक ही जाति के वनस्पति का रूप, पत्ते, फल, फूल आदि का गठन एक जैसा होता है। २६३ भोजन और उसका स्वीकरण (food & its assimilation):-भोजन की क्रिया जीवधारी में ही पायी जाती है। वनस्पति में यह क्रिया प्रत्यक्ष देखी जाती है। वह मिट्टी, पानी, पवन आदि से भोजन प्राप्त करके अपने अंगों को पुष्ट करता है । ये भी दुग्धाहारी, मांसाहारी, निरामिषाहारी विभिन्न प्रकार के होते हैं। प्रवर्धन (Growth):- बढ़ना ! वह भी अनुपात में सजीव में ही होता है। नन्हा-सा बीज वटवृक्ष के आकार का हो जाता है। उसके फल, फूल, पत्ते एक निश्चित सीमा में बढ़ते हैं। श्वसन (Respiration) :- जीवों में श्वसन क्रिया अनिवार्य है। यह प्रक्रिया वनस्पति में पत्तों द्वारा संपन्न होती है। हमारी वनस्पति से सबसे अधिक निकटता का मुख्य कारण श्वसन है। हम श्वास द्वारा जिस वायु (कार्बन-डाइ-आक्साइट) को छोड़ते हैं) पेड़-पौधे उसे ग्रहण करते हैं और पेड़-पौधे ऑक्सीजन को छोड़ते हैं, उसे हम ग्रहण करते हैं। इसे अपने लेख "जैन आगमों में वनस्पति विज्ञान” में कन्हैयालाल लोढ़ा ने प्रयोगों द्वारा भी स्पष्ट किया है।२६४ दोनों उपचित और अपचित होते हैं। मनुष्य और वनस्पति दोनों ही विविध अवस्था को प्राप्त होते हैं।२६५ २६२. विज्ञान लोक, अप्रेल १९६२ पृ. १४ २६३. मरुधर केसरी अभिनंदन ग्रन्थ खण्ड २ पृ. १४७ २६४. मरुधर केसरी अभिनंदन ग्रंथ खंड २ पृ. १४७ ११३ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004236
Book TitleDravya Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyutprabhashreejiji
PublisherBhaiji Prakashan
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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