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________________ पापकर्म का कर्ता उसके फल का भोक्ता बने बिना मुक्त नहीं हो सकता ।१९८ ___भगवती सूत्र में जीव स्वकृत कर्म के फल का भोक्ता है या नहीं, इस विषय में स्पष्ट विवेचन है। ... गौतम स्वामी प्रश्न करते हैं कि “जीव स्वकृत कर्म का भोक्ता है या नहीं?" तब महावीर स्वामी प्रश्न का समाधान करते हैं- किसी को भोगता है, किसी को नहीं। गौतम की जिज्ञासा शान्त नहीं हुई। उन्होंने पुनः पूछा-ऐसा क्यो? तब महावीर स्वामी ने कहा-जो वर्तमान में उदय अवस्था में हैं, उन्हें भोगता है; जो सत्ता में (संचित) हैं, उन्हें नहीं। इससे यह न समझे कि वे भविष्य में भोगने नहीं पड़ेंगे। भोगने तो उसको पड़ेंगे ही जो उनका कर्ता हैं । १९९ भगवान महावीर के ही समय में बौद्ध विचारधारा प्रचलन में आ चुकी थी। बौद्धसिद्धान्त 'प्रतीत्यसमुत्पादवाद' ने उस समय जनता में कुछ ऐसा विश्वास उत्पन्न कर दिया था कि कर्म करनेवाला क्षणिकविज्ञान-आत्मा कोई अन्य है तथा फल का भोक्ता क्षणिकविज्ञानात्मा कोई अन्य ही होता है। इसी प्रकार न्यायदर्शन ने दार्शनिक आधार पर यह सिद्ध कर दिया था कि कर्म करने में तो जीव स्वतन्त्र है किन्तु फल के भोगने में वह ईश्वर के अधीन है, अर्थात् ईश्वर चाहे तो पुण्य-पाप कर्मों का फल दे और चाहे तो न भी दे; ईश्वर की कृपा हो जाये तो अशुभ का परिणाम भुगतना नहीं पड़ेगा। इस प्रकार सांख्य के आत्मकर्तृत्वभोक्तृत्ववाद में संशय उत्पन्न हो गया था। श्रावकों के इस भ्रम को दूर करने के लिए गौतमस्वामी ने उसका समाधान भगवान् महावीर के द्वारा करवाया था। भगवान् के समाधान से यह व्यावहारिक असंतुलन भी समाप्त हो गया कि कर्म कोई करे और भोक्ता कोई बने । ____ आत्मा के कर्तृत्व और भोक्तृत्व से ही जीव मात्र के कर्मों की विषमता स्थापित होती है। अनेकात्मवाद एक यथार्थवादी सिद्धान्त है। इसके अनुसार विभिन्न प्राणी हैं, उन सभी के कर्मबन्ध भी विभिन्न (असमान) हैं। अतः उनके फल भी असमान ही हैं। भगवतीसूत्र में समानत्व और असमानत्व को लेकर लम्बी चर्चा है ।२०० १९८. उत्तराध्ययन ३.४ १९९. भगवती १.२.२.३ २००. भगवती १.२.५-१० १०० Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004236
Book TitleDravya Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyutprabhashreejiji
PublisherBhaiji Prakashan
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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