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________________ अगर उपयोग युगपत् होता तो इनका काल अनन्त उत्कृष्ट काल होना चाहिए था, परन्तु कषाय-पाहुड की मूल गाथा में केवलज्ञानोपयोग व केवलदर्शनोपयोग का उत्कृष्ट काल दो श्वास से कम बताया गया है, जो क्रमवाद मानने पर ही संभव दर्शनावरण और ज्ञानावरण का क्षय होने पर केवलज्ञान और केवलदर्शन की उत्पत्ति एक साथ होती है, परन्तु दोनों उपयोग एक साथ नहीं हो सकते ।१६१ इससे यही सारांश निकलता है कि गुण तो एक साथ रहते हैं, पर उपयोग क्रमपूर्वक होता है । गुण उपलब्धि है। उपयोग का अर्थ है उस गुण में प्रवृत्त होना। उपयोग और उपलब्धि भिन्न हैं। एक व्यक्ति अनेक विषयों का ज्ञाता है, पर वह उस समय एक ही दर्शन में उपयोग लगाए हुए है, पर इससे अन्य विषय के ज्ञान का अभाव नहीं है। ____ परन्तु, सिद्धान्त की चर्चा के बाद, यदि तार्किक सारांश देखा जाये तो सिद्ध जीवों के उपयोग में भेद होने का कारण ही नहीं होता, इसलिए ज्ञानशक्ति और दर्शनशक्ति की युगपत् उपस्थिति के कारण सिद्ध जीवों के दोनो उपयोग (ज्ञानोपयोग और दर्शनोपयोग) एक साथ मानना अधिक तर्कसंगत जान पड़ता जैन दर्शन का अनेकात्मवाद :• तत्त्वार्थ सूत्र में “जीवाश्च" १६२ सूत्र उपलब्ध होता है। इससे जैन दर्शन का अनेकात्मवाद प्रकट होता है। ___अकलंक ने इसकी व्याख्या इस प्रकार है- जीवों की अनन्तता और विविधता सूचित करने के लिये “जीवाश्च" बहुवचन का प्रयोग किया है। संसारी जीव गति आदि चौदह मार्गणास्थान, मिथ्यादृष्टि आदि चौदह गुणस्थान, सूक्ष्म बादर आदि चौदह जीव स्थानों के विकल्पों से अनेक प्रकार के हैं। मुक्त जीव भी एक, दो, तीन, संख्यात, असंख्यात, समयसिद्ध, शरीराकार अवगाहना के भेद से अनेक प्रकार के हैं । १६३ १६१. कषायपाहुड १३७ पृ. ३२११ १६२. त.सू. ५ १६३. त. वा. ५.३.४४२ ९३ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004236
Book TitleDravya Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyutprabhashreejiji
PublisherBhaiji Prakashan
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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