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________________ विभिन्न उपनिषदों में आत्मा का स्वरूप : आत्मा क्या है, इस संबंध में उपनिषद् में विभिन्न मत दृष्टिगोचर होते हैं, यथा प्रजापति के शब्दों में “पाप से निर्लिप्त, जन्म, जरा एवं मृत्यु के शोक से रहित, भूख और व्याकुलता की पीड़ा से रहित आत्मा है।"४२ ... बृहदारण्यकोपनिषद् में “आत्मा को कर्ता, जागृत और मृत्यु की अवस्था में एक समान रहनेवाला तत्त्व कहा है।"४३ छान्दोग्योपनिषद् के अनुसार “आत्मा और शरीर भिन्न है । आत्मा अशरीरी तथा अमर है। देखने और सूंघने का विचार करने वाला आत्मा है, आँख और नाक तो मात्र माध्यम है।" कठोपनिषद् के अनुसार “आत्मा न मरता है न उत्पन्न होता है । यह अजन्मा, नित्य, शाश्वत और पुरातन है।" ४५ यह न तर्कगम्य है और न ही वेद के अध्ययन से प्राप्तियोग्य । यह मात्र प्रज्ञा द्वारा ही प्राप्त होता है।"४६ .. याज्ञवल्क्य ने आत्मा के संबन्ध में अपने विचार इस प्रकार स्पष्ट किये हैं"आत्मा विषय नहीं हो सकती।" आत्मा ही एकमात्र प्रीतियोग्य है। जो भी हम प्रीति करते हैं वह आत्मा के लिये है। जो कुछ भी प्रिय और मूल्यवान् है वह सब आत्मा के कारण है।" ४८ . ऋषियों के “सोऽहं” ४९ एवं "अहम् ब्रह्मास्मि की अभिव्यक्ति से अनुमान होता है कि आत्मा और ब्रह्म का उन्हें प्रत्यक्ष अनुभव हो गया था। - ४२. छान्दोग्योपनिषद् ८.७.४ ४३. बृहदारण्यकोपनिषद् ४.४.३ ४४. छान्दोग्योपनिषद् ८.१२.१, २ ४५. कठोपनिषद् १.२:१८ ४६. कठोपनिषदप १.२.२३ ४७. बृहदारण्यक उपनिषद् ४.५.१५ ४८. वही ४.५.६ ४९. कोषीतकी उपनिषद् १.६ ५०. बृहदारण्य उप. १.४.१० ७५ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004236
Book TitleDravya Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyutprabhashreejiji
PublisherBhaiji Prakashan
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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