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उत्तराध्ययनसूत्र : एक परिचय
भारतीय चिन्तन किसी भी व्यक्ति, वस्तु, स्थान या ग्रन्थ के नाम की सार्थकता पर अधिक बल देता है। दूसरे शब्दों में कहा जाय तो यहां प्रायः व्यक्ति आदि के गुण-धर्म तथा ग्रन्थ की विषय-वस्तु या शैली के आधार पर ही उनका नामकरण किया जाता है। अतः हमें अपने शोध कार्य हेतु चयनित ग्रन्थ उत्तराध्ययनसूत्र के नामकरण पर भी विचार करना होगा कि इसके नामकरण की सार्थकता किस रूप में है ?
उत्तराध्ययनसूत्र शब्द उत्तर और अध्ययन इन दो शब्दों के संयोजन से बना है। विभिन्न समासों के आधार पर उत्तराध्ययनसूत्र शब्द का विश्लेषण निम्न प्रकार से किया जा सकता है
१. उत्तरकाले पठनीयानि, अध्ययनानि यानि तानि उत्तराध्ययनानि २. उत्तरकाले उक्तानि प्रवेदितानि अध्ययनानि यस्मिन् सः उत्तराध्ययन; ३. उत्तरकाले रचितानि अध्ययनानि उत्तराध्ययनानि; ४. उत्तराणि प्रधानानि अध्ययनानि यस्य/यस्मिन् तत् / सः उत्तराध्ययनम् ___ -उत्तराध्ययन; ५. उत्तररूपाणि अध्ययनानि उत्तराध्ययनानि; ६. उत्तरस्य कश्चित् ग्रंथस्य उत्तरभागरूपाणि अध्ययनानि यस्य तत् उत्तराध्ययन ।
बहुव्रीहि, कर्मधारय, तत्पुरूष आदि समासों के आधार पर व्याख्या करने से उत्तराध्ययनसूत्र के निम्न अर्थ फलित होते हैं -
उत्तरकाल में पढ़े जाने वाले अध्ययन; २. उत्तरकाल में प्रवेदित (कहे जाने वाले) अध्ययन;
उत्तरकाल में रचित अध्ययन ४. श्रेष्ठ धर्म के प्रतिपादक अध्ययन; ५. उत्तर अर्थात् समाधानपरक अध्ययन; ६. किसी ग्रन्थ के उत्तरभाग रूप अध्ययन।
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