________________
करना चाहिए। अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य एवं अपरिग्रह का पालन मन को वश में करने का अमोघ उपाय है।
अन्त में बताया है कि भक्तपरिज्ञा के समय वेदना को शान्त भाव से सहन करना चाहिए। नमस्कार महामंत्र के ध्यानपूर्वक प्रतिज्ञा का पूर्ण पालन करना चाहिए।
भक्तपरिज्ञा का जघन्य साधक निम्न देवलोक में उत्पन्न होता है। मध्यम साधक अच्युत कल्प में जन्म ग्रहण करता है। उत्कृष्ट साधक सर्वार्थसिद्ध विमान या सिद्धपद को प्राप्त करता है। १. तंदुलवैचारिक
प्रस्तुत प्रकरण का नाम तंदुलवैचारिक है। तंदुल का अर्थ चावल होता है;. सौ वर्ष का वृद्ध पुरूष एक दिन में जितने तन्दुल (चावल) खाता है उनकी संख्या को उपलक्षित कर इस ग्रन्थ का नामकरण हुआ है। प्रस्तुत ग्रन्थ के इस लाक्षणिक नामकरण का आशय विद्वानों के लिए अन्वेषणीय है।
इसमें मुख्यतः मानवजीवन के विविध पक्षों यथा गर्भावस्था, मानवीय शरीर की संरचना, उसकी शतायु के दस विभाग, उनमें होने वाली शारीरिक स्थितियां तथा उसके आहार आदि के विषय में विशद विवेचन किया गया है। ... प्रस्तुत ग्रन्थ में नारी स्वभाव की निन्दा करते समय उसके व्युत्पत्तिपरक अनेक नामों की चर्चा की है जैसे नारी के पर्यायवाची प्रमदा शब्द की व्युत्पत्ति करते हुए कहा है; 'पूरिसे मत्ते करंति त्ति पमयाओं अर्थात् पुरूष को कामोन्मत्त बनाने के कारण नारी प्रमदा कहलाती है ।
__महिला शब्द की व्युत्पत्ति इस प्रकार की गई है ‘णाणाविहेहिं कम्मेहिं सिप्पइयाएहिं पुरिसे मोहंति त्ति महिलाओ' अर्थात् अनेक प्रकार की शिल्प आदि कलाओं द्वारा पुरूष को मोहित करने के कारण वह महिला कही जाती है।
५४ तदुसाना वर्षरतायुष्क प्रतिदिन भोग्यानां संख्याविचारोपलक्षितं तदुलवैचारिक' - अभियानराजेन्द्रकोश; चतुर्य भाग पृष्ठ २१६८।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org