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विशिष्ट नियम, जिनचरित्र और स्थविरावली दी गई है । नौवी दशा में तीस महामोहनीय स्थानों का वर्णन है। मोहनीयकर्म सब कर्मो में बलवान है। अतः इन्हें महामोहनीय कहा गया है। जिनसे मोहनीयकर्म का निविड़ बन्ध होता है, वे महामोहनीय स्थान हैं। दसवीं दशा का नाम 'आयतिस्थान' है । इसमें नौ निदानों का वर्णन है। वासनापूर्ति मूलक संकल्प को निदान कहते हैं।
इस प्रकार प्रस्तुत आगम में चित्तसमाधि एवं धर्मस्थिरता की सुन्दर प्रेरणा दी गई है।
२. बृहत्कल्प
इस सूत्र को कल्प नाम से भी जाना जाता था । मध्यकाल में जब पर्युषणाकल्प कल्पसूत्र के नाम से प्रसिद्ध हो गया तो इसका नाम बृहत्कल्प हो गया। विद्वानों की मान्यता है कि बृहत्कल्प, व्यवहारसूत्र का पूरक है क्योंकि दोनों में साध्वाचार का निरूपण किया गया है।
'कल्प' शब्द का अर्थ है – मर्यादा। श्रमण धर्म की मर्यादा का प्रतिपादक होने से इसका बृहत्कल्प नाम सार्थक प्रतीत होता है। इसमें छ: उद्देशक, इक्यासी अधिकार और २०६ सूत्र हैं। ग्रन्थाग्र ४७३ श्लोक परिमाण है । .. प्रथम उद्देशक में साधु की मासकल्प या विहारकल्प सम्बन्धी .. मर्यादाओं का वर्णन किया गया है। द्वितीय उद्देशक में उपाश्रय कैसा होना चाहिए, इसका. वर्णन किया गया है एवं शय्यातर (स्थान के मालिक) का आहार वर्जनीय बताया गया है। साथ ही कल्पनीय वस्त्र, रजोहरण आदि के प्रकारों का भी वर्णन किया गया है। तीसरे उद्देशक में साधु-साध्वी के पारस्परिक व्यवहार की मर्यादाओं पर प्रकाश डाला गया है। चतुर्थ उद्देशक में कदाचित् अब्रह्मसेवन तथा रात्रि भोजन सम्बन्धी दोषों के प्रायश्चित्त का विधान किया गया है। पंचम उद्देशक में ब्रह्मचर्य एवं आहार
- ४४ (क) 'छेदसूत्र-एक परिशीलन' पृष्ठ ३२
(ख) 'आगम साहित्य - एक अनुशीलन' पृष्ठ ६९ (ग) 'जैन साहित्य नुं संक्षिप्त इतिहास' (विण्टरनिट्स के विचार पृष्ठ ७७); (घ) 'आगमसार' पृष्ठ ३८२
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आचार्य देवेन्द्रमुनि । आचार्य जयन्तसेनसूरि। मोहनलाल दलीचन्द देसाई। रसिकलाल, छगनलाल सेठ।
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