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के आश्रित त्रस जीवों का विनाशक प्रदूषण फैलाने वाला होने से जैनाचार में त्याज्य है।
जैन-परम्परा में छानकर तथा उबालकर पानी का उपयोग करने का विधान है । बिना छाने हुये तथा कच्चे पानी से हैजा आदि संक्रामक रोग होने की संभावना रहती है एवं रोगी व्यक्ति वातावरण को भी प्रभावित करता है।
वायु प्रदूषण और वायु संरक्षण
- वायु जीवन का आधार है, स्वस्थता के लिये शुद्ध वायु का होना आवश्यक है । अशुद्ध वायु व्यक्ति को अस्वस्थ बनाती है । किन्तु वर्तमान स्थिति बड़ी विषम हो गई है । वायु प्रदूषित होती जा रही है । एक ओर कारखाने, स्कूटर, कार, बस, ट्रक आदि के द्वारा निष्कासित धुंआ, विषैली गैसें तथा सूक्ष्म कार्बन-कण वायु में मिल जाते हैं तो दूसरी ओर वन-सम्पदा के नष्ट होने के कारण वातावरण में कार्बनडाइआक्साइड का प्रतिशत बढ़ता जा रहा है । आज शुद्ध प्राणवायु का मिलना दुर्लभ हो गया है । व्यक्ति अनावश्यक वाहनों का उपयोग करने का आदि हो गया है । यदि यही स्थिति रही तो भविष्य में लोगों को ऑक्सीजन के सिलेण्डर पीठपर लादकर घूमना होगा ।
वायु प्रदूषण मात्र धुएं और उद्योगों के कारण ही नहीं होता है वरन् घरेलू ईंधन के उपयोग से भी वायु प्रदूषित होती है । राजस्थान पत्रिका (३१ दिसंबर २००१) की सूचना के अनुसार अधजले ईंधन से कार्बन मोनोआक्साइड, पॉली आर्गेनिक मैटीरियल्स, पाली एरोमैटिक एवं हाइड्रोकार्बन्स जैसे खतरनाक तत्त्व निकलते हैं जो तरह-तरह के रोग फैलाते हैं । घर के भीतर होने वाले वायु प्रदूषण से कैंसर, • क्षयरोग, नेत्ररोग एवं श्वांस सम्बन्धी बीमारियां होती हैं ।
... उत्तराध्ययनसूत्र वायुकाय एवं वायुकाय के आश्रित जीवों के प्रति करूणावान रहने की प्रेरणा देता है । जैन आचार की नियमावली में गृहस्थ का अनावश्यक ईंधन जलाने का निषेध है । गीले ईंधन से धुंआ अधिक होता है जिससे प्रदूषण फैलता है । अतः जैनदर्शन में सजीव ईंधन को जलाने का भी मना किया गया है ।
.. जैन साधु वाहनों का उपयोग नहीं करते हैं । वे सर्वत्र पैदल भ्रमण करते हैं ।
जैन धर्म में गृहस्थ को भी यथाशक्य पैदल चलने की प्रेरणा दी गई है । पैदल
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