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(विशुद्धता) उपलब्ध नहीं हुई पर एक न एक दिन अवश्य उपलब्ध होगी। अतः उत्तराध्ययनसूत्र का यह सूत्र सफलता का सन्देशवाहक है।
___ स्वेटमार्डन की पुस्तक 'व्यक्तित्व का विकास' पूर्णतः इसी बात पर बल देती है कि आशा की किरण के सहारे कदम बढाते रहने पर सफलता अवश्यमेव उपलब्ध होती है।
आशा, आनन्द एवं सफलता की उपलब्धि का अमोघ साधन है। अतः उत्तराध्ययनसूत्र का यह सन्देश है कि जीवन में कभी निराश नहीं होना चाहिये। इसमें वर्णित अरति परीषह की भी यही शिक्षा है कि संयम में अरति उत्पन्न होने पर भी निराश नहीं होना है; जीवन में कभी भूल हो जाय तो उस भूल को भूल के रूप . में स्वीकार एवं सुधार करके अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते चले जाना चाहिए, न कि उस भूल के प्रति अत्यधिक चिन्तित होकर हतोत्साहित होना चाहिये।
इस प्रकार उत्तराध्ययनसूत्र का आशावादी दृष्टिकोण आज मानव को सुख एवं शान्ति प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण योगदान प्रस्तुत करता है। उपभोक्तावाद से मुक्ति के उपाय
विज्ञान के कारण आज मानव मन की आकांक्षायें दिनोदिन बढ़ती जा रही हैं; मानव की इन बढ़ती हुई आकांक्षाओं ने उपभोक्तावादी संस्कृति को जन्म दिया है। इस संस्कृति के परिणामस्वरूप मानव आक्रोश एवं विक्षोभ से भर गया है। डॉ. नरेन्द्र भानावत के शब्दों में:- 'उपभोक्ता संस्कृति ने व्रत के स्थान पर वासना को, त्याग के स्थान पर भोग को, संवेदना के स्थान पर उत्तेजना को, हार्दिकता के स्थान पर यांत्रिकता को अधिक महत्त्व दिया है। इस प्रकार इस संस्कृति ने मानव को मानवता से विमुख कर क्रूरता एवं दानवता की ओर प्रेरित किया है। इस संस्कृति से मुक्ति दिलाने के लिये उत्तराध्ययनसूत्र हमें उपभोग के स्थान पर संयम को प्रतिष्ठित करने की प्रेरणा देता है। आवश्यकता के अनुसार उपयोग किया जाय, इस बात को इसमें अनेक सन्दर्भो में प्रकट किया गया है।
कामभोगों का आद्योपान्त स्वरूप प्रदर्शित करते हुए इसमें कहा गया है कि ये कामभोग क्षणमात्र के लिये सुखदायी होते हैं, किन्तु चिरकाल तक दुःख देते हैं। अतः ये अधिक दुःख और अल्प सुख देने वाले होते हैं । ये संसार से मुक्त होने में बाधक हैं एवं अनर्थों की खान हैं।'
२२ 'शिक्षा और सेवा के चार दशक' पृष्ठ २ । Jain Education International
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