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________________ ५७३ उत्तराध्ययनसूत्र के टीकाकारों ने इसके सड़सठ भेदों का उल्लेख किया है। सूत्रकृतांगनियुक्ति तथा प्रवचनसारोद्धार में भी इसके सड़सठ भेद ही बतलाये गये हैं। . जीव, अजीव आदि नौ तत्त्वों को सत्, असत्, सदसत्, अवक्तव्य, सद्-अवक्तव्य, सद्सअवक्तव्य और असद्-अव्यक्तव्य इन सात अपेक्षाओं से गुणा करने पर Ex ७ = ६३ भेद होते हैं। साथ ही चार विकल्प उत्पत्ति के होते हैं। इसके भेदों की तालिका निम्न है - १. सत् जीवो इति को वेत्ति, किं वा तेन ज्ञातेन २. असत् जीवो इति को वेत्ति, किं वा तेन ज्ञातेन ३. सदसत् जीवो इति को वेत्ति, किं वा तेन ज्ञातेन ४. अवक्तव्यो जीवो इति को वेत्ति, किं वा तेन ज्ञातेन ५. सदवक्तव्यो जीवो इति को वेत्ति, किं वा तेन ज्ञातेन ६. असदवक्तव्यो जीवो इति को वेत्ति, किं वा तेन ज्ञातेन ७. सदसदवक्तव्यो जीवो इति को वेत्ति, किं वा तेन ज्ञातेन ये सात जीव तत्त्व के विकल्प हुए। इसी प्रकार शेष अजीवादि आठ के भी ये ही सात विकल्प होने से कुल ६३ भेद हुए । उत्पत्ति के ४ भेद होते १. सती भावोत्पत्तिः को वेत्ति, किं वा तया ज्ञातया २. असती भावोत्पत्तिः को वेत्ति, किं वा तया ज्ञातया ३. सदसती भावोत्पत्तिः को वेत्ति, किं वा तया ज्ञातया ४. अवक्तव्या भावोत्पत्तिः को वेत्ति, किं वा तया ज्ञातया .. इस प्रकार क्रियावादी आदि इन चारों विचारधाराओं के पूर्वोक्त ३६३ भेद हुये। ३६ (क) उत्तराध्ययनसूत्र टीका-पत्र ४४४ (ब) उत्तराध्ययनसूत्र टीका-पत्र ५०६ :४० (क) सूत्रकृतगिनियुक्ति - ११६ (ब) प्रवचनसारोचार-पृष्ठ - ५२६ - (शान्त्याचाय) - (लक्ष्मीवल्लभगाणि) - (नियुक्तिसंग्रह, पृष्ठ ४६६); - (साध्वी हेमप्रभा श्री) . Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004235
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinitpragnashreeji
PublisherChandraprabhu Maharaj Juna Jain Mandir Trust
Publication Year2002
Total Pages682
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size9 MB
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