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उपभोक्तावाद का आधार अनियन्त्रित इच्छावृत्ति है । उत्तराध्ययनसूत्र इच्छाओं को सीमित करने की बात करता है।
उपभोक्तावाद स्वार्थवृत्ति पर आधारित है; जबकि उत्तराध्ययनसूत्र स्वार्थ से ऊपर उठकर परार्थ एवं परमार्थ की बात करता है। यह जब इच्छाओं के सीमाकरण की बात करता है तो यह परार्थवृत्ति का सन्देश देता है और जब इच्छा से निवृत्ति अर्थात् अपरिग्रह की चर्चा करता है तब यह परमार्थ का सन्देशवाहक होता है।
इस प्रकार उत्तराध्ययनसूत्र का आर्थिक दर्शन मानव को सुख-शान्ति पूर्वक जीवन यापन करने की प्रेरणा देता है।
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