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मनुष्य का जीवन बहु आयामी है, उसके आर्थिक, सामाजिक, आध्यात्मिक जीवन के विविध पक्ष हैं। भारतीय संस्कृति में मानव जीवन के इन विविध पक्षों को चार पुरूषार्थ - धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के अन्तर्गत समाहित किया है। पुरूषार्थ शब्द के निम्न दो अर्थ प्राप्त होते हैं -
(१) पुरूष का प्रयोजन; और (२) पुरूष के लिए करणीय ।
(१) धर्म - जिससे 'स्व-पर का कल्याण होता हो तथा व्यक्ति आध्यात्मिक विकास की ओर अग्रसर होता हो, वह धर्मपुरूषार्थ है ।
(२) अर्थ जीवनयात्रा के निर्वाह के लिए मानव को भोजन, वस्त्र, आवास आदि
की आवश्यकता होती है। अतः जीवन की इन आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु साधन जुटाना अर्थपुरूषार्थ है।
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उत्तराध्ययन सूत्र का आर्थिक दर्शन
(३) काम जैविक आकांक्षाओं की पूर्ति हेतु जुटाये गए साधनों का उपभोग करना कामपुरूषार्थ है। दूसरे शब्दों में ऐन्द्रिक विषयों की प्राप्ति हेतु किया जाने वाला पुरूषार्थ ही कामपुरूषार्थ है। अर्थपुरूषार्थ में सामान्यतः दैहिक आवश्यकताओं की पूर्ति के साधनों की उपलब्धि प्रमुख रहती है; वहीं कामपुरूषार्थ के अन्तर्गत मन एवं • इन्द्रियों की मांग की पूर्ति के प्रयास की प्रमुखता रहती है।
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(४) मोक्ष - दुःख के कारणों को जानकर उनके निराकरण हेतु किया गया पुरूषार्थ मोक्ष पुरूषार्थ है। इसमें दैहिक वासनाओं और आकांक्षाओं से ऊपर उठने और अपनी स्वतन्त्रता को बनाए रखने का प्रयत्न प्रमुख होता है।
प्राचीन स्तर के आगमों में हमें चतुर्विध पुरुषार्थ का स्पष्ट उल्लेख प्राप्त नहीं होता है, फिर भी उनमें चारों पुरूषार्थ सम्बन्धी चर्चा प्रकीर्ण रूप में
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