________________
५४६
मुनियों का स्थान समाज में श्रेष्ठतर था। इसमें ऐसे अनेक प्रसंग उल्लेखित हैं, जहां राजा मुनियों की सेवा में उपस्थित होते थे। न्याय व्यवस्था
राज्य के सुरक्षा सम्बन्धी कार्यों के अतिरिक्त न्याय व्यवस्था, राजकोष की वृद्धि, नगर का विकास आदि कार्य भी प्रमुख माने जाते थे। न्याय व्यवस्था के. अधीन राजा अपराधियों को दण्ड प्रदान करते थे, ऐसे भी संकेत उत्तराध्ययनसूत्र में प्राप्त होते हैं। इसके इक्कीसवें अध्ययन में कहा गया है : 'वज्झमण्डन सोभाग अर्थात् वध्यजनोचित मण्डनों से शोभित। इन शब्दों में प्राचीन दण्ड पद्धति के संकेत उपलब्ध होते हैं। इस गाथा की व्याख्या में टीकाकार ने लिखा है कि प्राचीनकाल में चोरी करने वाले को मृत्युदण्ड दिया जाता था, जिसे वध की संज्ञा दी जाती थी। उसके गले में कनेर के लाल फूलों की माला और लाल वस्त्र पहनाये जाते थे। उसके शरीर पर लाल चन्दन का लेप किया जाता था।
सूत्रकृतांग की चूर्णि एवं टीका में उपर्युक्त उल्लेख के साथ यह भी संकेत मिलता है कि अपराधी को पूरे नगर में घुमाया जाता थ्रा। यह बात उत्तराध्ययनसत्र की मूल गाथा से भी सिद्ध होती है क्योंकि नगर में घुमाते हुए चोर को ही मृगापुत्र देखते हैं।
संक्षेप में हम यही कहेंगे कि यद्यपि उत्तराध्ययनसूत्र मूलतः संयम एवं साधना पर ही विशेष बल देता है फिर भी उसमें उपर्युक्त राज्यव्यवस्था सम्बन्धी कुछ सूचनायें भी सांकेतिक रूप से उपलब्ध हो जाती हैं। इस प्रकार उत्तराध्ययनसूत्र का सामाजिक दर्शन मानव के सामाजिक जीवन के लिए सम्यक दिशा प्रदान करता है।
- (शान्त्याचार्य)
४८ उत्तराध्ययनसूत्र - २१/८ । ४६ उत्तराध्ययनसूत्र टीका-पत्र ४५३ ५० (क) सूत्रकृतांग चूर्णि-पत्र - १८४
(ख) सूत्रकृतांगटीका-पत्र १५० Jain Education International
- उछत् - उत्तरायणाणि भाग २, पृष्ठ १० (युवाचार्य महाप्रज्ञ)। ..
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org