________________
५०२
नोकषाय के प्रकार उत्तराध्ययनसूत्र में नोकषाय को सात अथवा नौ भागों में विभक्त किया गया है। टीकाकार शान्त्याचार्य ने इसे स्पष्ट करते हुये लिखा है कि वेद के तीन अलग नाम न देकर सिर्फ वेद का ही ग्रहण करने पर इसके सात भेद, तथा तीनों को अलग-अलग करने पर, इसके नौ भेद होते हैं। अब हम क्रमशः इन नौ नोकषायों का वर्णन कर रहे हैं - (9) हास्य - जिस कर्म के उदय से सकारण या अकारण हंसी आती हो वह
हास्य नोकषाय कर्म है। (२) रति - पदार्थों में अनुरक्ति रति कहलाती है। (३) अरति - विषयों में अप्रीति (द्वेष) का होना अरति है। (४) भय - जीव में भयमूलक भावों का उत्पन्न होना भय कषाय है। (५) शोक - इष्ट विषयों के वियोग होने पर किया जाने वाला रूदन; विलाप
आदि शोक है। (६) जुगुप्सा - अशुचिमय पदार्थों को देखकर घृणा के भाव करना जुगुप्सा है। (७) स्त्रीवेद - पुरूष के साथ कामभोग की आकांक्षा स्त्रीवेद है। (२) पुरूषवेद - स्त्री के साथ कामभोग की अभिलाषा पुरूषवेद है। (६) नपुंसकवेद -स्त्री एवं पुरूष दोनों के साथ होने वाली कामभोग की आकांक्षा
नपुंसकवेद कहलाती है।
कषाय मुक्ति के लाभ
उत्तराध्ययनसूत्र के उन्तीसवें अध्ययन में कषाय-प्रत्याख्यान का लाभ बतलाते हुये कहा गया है कि कषाय के प्रत्याख्यान से वीतराग भाव की प्राप्ति होती है तथा वीतराग भाव को प्राप्त जीव सुख एवं दुःख दोनों में सम रहता है।
३७.उत्तराध्ययनसूत्र ३३/११ । ३८ उत्तराध्ययनसूत्र टीका पत्र - ६४३ ३६ उत्तराध्ययनसूत्र २६/५६ ।
- (शान्त्याचार्य)।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org