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उत्तराध्ययनसूत्र का शिक्षादर्शन
शिक्षा जीवन की अनिवार्य आवश्यकता है। शिक्षा के बिना व्यक्ति न तो रोजी रोटी कमा सकता है और न अच्छा जीवन जी सकता है। उस दृष्टि से शिक्षा की जीवन में महत्त्वपूर्ण उपयोगिता है। मानव के जीवन में शिक्षा का महत्त्व क्या है ? क्यों है ? और कैसे है ? इसका समाधान हम उत्तराध्ययनसूत्र के अन्तर्गत खोजने का प्रयास करेंगे।
उत्तराध्ययनसूत्र के अनुसार शिक्षादर्शन के महत्त्वपूर्ण अंग है - शिक्षा का उद्देश्य, विनयाचार, गुरूशिष्य सम्बन्ध एवं स्वाध्याय। इसमें इन चारों अंगों पर सम्यक रूप से प्रकाश डाला गया है। यहां हम क्रमशः इन चारों अंगों का विवेचन प्रस्तुत कर रहे हैं -
१२.१ शिक्षा का उद्देश्य
(इस जगत में कोई प्रवृत्ति निष्प्रयोजन नहीं की जाती है। कहा भी है 'प्रयोजन विना मन्दोपि न प्रवर्तते' अर्थात प्रयोजन के बिना सामान्यजन भी किसी कार्य में प्रवृत्त नहीं होते हैं, तो फिर प्रश्न होता है कि शिक्षा प्राप्त करने का प्रयोजन क्या है ? वस्तुतः ज्ञान का यथार्थ उद्देश्य तो मानवजीवन में व्यवहार का पथ-प्रदर्शन
करना है ताकि वह अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सके। - वर्तमान में शिक्षा का उद्देश्य आजीविका की पूर्ति एवं सुख सुविधापूर्ण
जीवन-यापन रह गया है, किन्तु शिक्षा को मात्र रोटी-रोजी से जोड़ना, नितान्त अनुचित है। यद्यपि रोटी के बिना मनुष्य का काम नहीं चल सकता, फिर भी इसे शिक्षा का एक मात्र उद्देश्य मानना गलत है; क्योंकि एक अशिक्षित व्यक्ति भी अपनी उदर पूर्ति करता हुआ पाया जाता है। यहां तक कि पशु पक्षी भी अपना पेट भरते : हैं। मनुष्य एवं पशु पक्षी की भेद रेखा का दिग्दर्शन हितोपदेश के निम्न श्लोक में
होता है
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