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________________ ४३५ १. अहिंसा-अणुव्रत इस अणुव्रत का शास्त्रीय नाम 'स्थूलप्राणातिपात विरमणव्रत' है। अर्थात् गृहस्थ साधक स्थूल (त्रस) जीवों की हिंसा से विरत होता है। उपासकदशांगसूत्र में आनंद श्रावक द्वारा अहिंसा-अणुव्रत की प्रतिज्ञा निम्न रूप से स्वीकार की गई है - 'मैं यावज्जीवन मन, वचन व कर्म से स्थूल प्राणातिपात न स्वयं करूंगा न दूसरों से कराऊंगा। रत्नकरण्डकश्रावकचार', कार्तिकेयानुप्रेक्षा, पुरूषार्थसिद्धयुपाय आदि ग्रन्थों में अहिंसा अणुव्रत का पालन तीन करण (कृत, कारित एवं अनुमोदित) तथा तीन योग (मन, वचन एवं काया) से बताया गया है । 2 पं. आशाधरजी के अनुसार श्रावक अनुमोदना से विरत नहीं हो सकता है। अतः वह तीन योग और दो करण से हिंसा का त्याग करता है। इस प्रकार श्रावक स्थूल हिंसा का त्याग करता है। जीव दो प्रकार के कहे गये हैं- सूक्ष्म और स्थूल। पृथ्वी, पानी, वायु, अग्नि तथा वनस्पति के जीव जिनकी चेतना स्पष्ट रूप से परिलक्षित नहीं होती है, वे सूक्ष्म जीव कहलाते हैं। इसके विपरीत जो उद्देश्य पूर्वक गमनागमन कर सकते हैं, वे दो इन्द्रिय, तीन इन्द्रिय, चार इन्द्रिय एवं पांच इन्द्रिय वाले जीव स्थूल जीव कहलाते हैं। जैन पारिभाषिक शब्दावली में सूक्ष्म एवं स्थूल जीवों को क्रमशः “स्थावर' एवं 'वस' कहा जाता है। .. गृहस्थ स्थावर जीवों की हिंसा का सर्वथा परित्याग नहीं कर सकता क्योंकि उसकी दैनंदिन आवश्यकतायें जैसे - रोटी, कपड़ा, मकान आदि की पूर्ति में उसे स्थावर जीवों की हिंसा करनी पड़ती है परन्तु इतना अवश्य है कि वह इन आवश्यकताओं को परिमित कर सकता है और व्यर्थ हिंसा से बच सकता है। इसी प्रकार गृहस्थ श्रावक त्रस जीवों की हिंसा का भी पूर्ण रूपेण त्याग नहीं कर सकता है क्योंकि उसे कदाचित अपने देश, समाज, परिवार, धर्म तथा शरीर की रक्षा करने के लिये विरोधी या आततायी का प्रतीकार करना पड़ता है इस प्रकार २०. स्थानांग ५/१/२। — २१. उपासकदशांग १/२४ - (लाडनूं)। २२. (क) रत्नकरण्डकश्रावकाचार ५३ ; (ख) कार्तिकेयानुप्रेक्षा - ३०-३२ ; (ग) पुरुषार्थसिद्ध्युपाय - ७५ । २३. सागारधर्मामृत - पृष्ठ १३६ । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004235
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinitpragnashreeji
PublisherChandraprabhu Maharaj Juna Jain Mandir Trust
Publication Year2002
Total Pages682
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size9 MB
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