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१. आवश्यकी:
साधु आवश्यक कार्य होने पर ही उपाश्रय से बाहर गमन करे। अनावश्यक रूप से गमनागमन नहीं करे। आचार्य हरिभद्र पंचाशकप्रकरण में लिखते हैं कि आवश्यक कार्य के लिए गुरू की आज्ञा से आगमोक्त ईर्यासमिति आदि का विधिपूर्वक पालन करते हुए वसति से बाहर निकलते हुए साधु की आवश्यकी' सामाचारी शुद्ध जानना चाहिये, क्योंकि उसमें आवश्यकी शब्द का अर्थ घटित. होता है।116
___ मुनि को जब किसी आवश्यक कार्य से बाहर जाना हो तो वह 'आवस्सही' शब्द का उच्च स्वर से उच्चारण करके जाये ताकि अन्य मुनियों को भी उस मुनि के आवश्यक कार्य हेतु बाहर जाने की सूचना रहे। साथ ही उसे भी यह ध्यान रहे कि केवल आवश्यक कार्यों के सम्पादन हेतु वह उपाश्रय से निकला है अतः निरर्थक परिभ्रमण अनुचित है। मुनि के आवश्यक कार्य क्या-क्या हैं इसकी चर्चा 'ईर्यासमिति' के सन्दर्भ में की जा चुकी है।
आवश्यकी सामाचारी से तीन बातें प्रतिफलित होती हैं:१. मुनि सप्रयोजन गमनागमन करे, निष्प्रयोजन नहीं। २. अन्य मुनियों को उसके उपाश्रय से बाहर जाने की सूचना रहे, और
३. मुनि ईर्यासमिति का पालन करते हुए गमन करे। . २. नैषेधिकी :
___ उत्तराध्ययनसूत्र में कहा गया है कि उपाश्रय में प्रविष्ट होने पर मुनि 'निस्सीहि का उच्चारण करे। जिस प्रकार आवश्यक कार्यों के लिए वसति से बाहर निकलते समय 'आवस्सहि' शब्द का प्रयोग करना 'आवश्यकी' सामाचारी है, उसी प्रकार स्थान में प्रवेश करते समय 'निस्सीहि शब्द का उच्चारण करना 'नैषेधिकी सामाचारी है। इसका तात्पर्य यह है कि मुनि यह ध्यान रखे कि जब तक कोई अपरिहार्य कारण उपस्थित न हो तब तक उसे वसति या उपाश्रय से बाहर जाने का निषेध है।
११६ पंचाशकप्रकरण - १२/१८ । ११७ उत्तराध्ययनसूत्र - २६/५ ।
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