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सम्पादित करने के लिए मुनि आहार करे। ४. संयम साधना के लिए :
संयम यात्रा के निर्वाह के लिए मुनि को आहार करना चाहिये, क्योंकि सामान्यतः आहार के अभाव में दीर्घकाल तक संयम साधना सम्भव नहीं होती है। ५. अहिंसा पालन के लिए :
अहिंसा के परिपालन के लिए भी मुनि को आहार करने की अनुज्ञा दी गई है । यदि मुनि आहार नहीं करेगा तो शरीरबल क्षीण होगा । और अशक्त साधक समितियों का सम्यक् प्रकार से परिपालन नहीं कर सकेगा । अतः अहिंसा की साधना के लिए मुनि को आहार ग्रहण करना चाहिये। ६. धर्म चिंतन के लिए :
___ उत्तराध्ययनसूत्र के टीकाकार शान्त्याचार्य ने धर्म के दो अर्थ किये हैं - धर्मध्यान और श्रुतधर्म ।
१. धर्मध्यान : प्रशस्त ध्यान है, यह शुक्ल ध्यान का प्रारंभिक सोपान है। २. श्रुतधर्म का अर्थ है – ज्ञान की आराधना।
- धर्म-चिंतन में शारीरिक बल एवं मानसिक बल,दोनों की आवश्यकता होती है। अतः शरीर बल एवं मनोबल की क्षमता को बनाए रखने के लिए मुनि को आहार ग्रहण करना चाहिये ।
आहार त्याग के कारण :
मुनि को किन परिस्थितियों में आहार-ग्रहण नहीं करना चाहिये, इसका उल्लेख करते हुए उत्तराध्ययनसूत्र में कहा गया है - १. आंतक :
आकस्मिक प्राकृतिक अथवा अन्यकृत भयावह स्थितियां उत्पन्न होने पर मुनि आहार ग्रहण न करे जैसे भूकम्प, बाढ़ आदि की स्थिति ।
११४ उत्तराध्ययनसूत्र २६/३४ ।
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