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________________ ३०० भगवतीसूत्र में भी ज्ञान एवं चारित्र की अपेक्षा से व्यक्ति के चार प्रकारों का निरूपण किया गया है और उसमें श्रुत (ज्ञान) एवं शील (चारित्र) दोनों से सम्पन्न व्यक्ति को ही मोक्ष का अधिकारी बताया गया है।" (१) न तो श्रुतसम्पन्न है और न शील सम्पन्न है। (२) श्रुतसम्पन्न है, किन्तु शील सम्पन्न नहीं है। (३) श्रुतसम्पन्न नहीं है, किन्तु शील सम्पन्न है। (४) श्रुतसम्पन्न भी है और शील सम्पन्न भी है। अब हम अग्रिम क्रम में क्रमशः मोक्षमार्ग की चर्चा प्रस्तुत करेंगे किन्तु यहां यह प्रश्न उपस्थित होता है कि इस क्रम में पहले सम्यग्दर्शन को रखा जाय या सम्यग्ज्ञान को? अतः सर्वप्रथम हम इन दोनों की पूर्वापरता के आधार को स्पष्ट करना उचित समझते हैं। ६.२ दर्शन एवं ज्ञान की पूर्वापरता का आधार . जैन आगम ग्रन्थों में मोक्षमार्ग की चर्चा के सन्दर्भ में ज्ञान एवं दर्शन की पूर्वापरता अनेक अपेक्षाओं से निर्धारित की गई है। उत्तराध्ययनसूत्र में ही चतुर्विध मोक्षमार्ग की चर्चा में जहां एक ओर ज्ञान को दर्शन से पूर्व स्थान दिया गया है वहीं दूसरी ओर उसी अध्ययन की तीसवीं गाथा में दर्शन को ज्ञान से पूर्व स्थान दिया गया है। अतः यह प्रश्न स्वाभाविक है कि ज्ञान एवं दर्शन का पूर्वापर क्रम एकान्तिक नहीं है, सापेक्ष है। इसे स्पष्ट रूप से समझने के लिए दर्शन शब्द के अर्थ पर दृष्टिपात करना आवश्यक है। दर्शन शब्द के मुख्यतः तीन अर्थ है (१) अनुभूति (२) दृष्टिकोण और (३) श्रद्धा। ये तीनों अर्थ ही दर्शन के पूर्व तथा पश्चात् क्रम के निर्धारक हैं। दर्शन शब्द अपने अनुभूति एवं दृष्टिकोण परक अर्थ में 'ज्ञान' से पूर्ववर्ती होता है; क्योंकि अनुभूति एवं दृष्टिकोण के अभाव में न तो 'ज्ञान' सम्भव है और न ही ज्ञान का सम्यक्त्व सम्भव है। ज्ञान अनुभूति एवं दृष्टिकोण के सम्यक्त्व पर ही आधारित होता है क्योंकि जब व्यक्ति की दृष्टि ही दूषित है तो वह क्या सत्य को जानेगा और क्या उसका आचरण करेगा। दूसरी ओर श्रद्धापरक अर्थ में दर्शन का क्रम ज्ञान के पश्चात् हो जाता है। उत्तराध्ययनसूत्र में श्रद्धापरक अर्थ में ही ११ भगवती Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004235
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinitpragnashreeji
PublisherChandraprabhu Maharaj Juna Jain Mandir Trust
Publication Year2002
Total Pages682
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size9 MB
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