________________
३.
४.
५.
६.
उत्तराध्ययनसूत्र में प्रतिपादित ज्ञानमीमांसीय अवधारणायें
३.१. ज्ञानवाद
३.२ प्रमाणवाद
उत्तराध्ययनसूत्र में प्रतिपादित तत्त्वमीमांसीय अवधारणायें
४. १ पंचास्तिकाय की अवधारणा
४.२ षट्द्रव्यों की अवधारणा
४.३ विविध दर्शनों में द्रव्य की अवधारणा
४. ४ जैनदर्शन में द्रव्य की अवधारणा
४.५ गुण एवं पर्याय का स्वरूप एवं उनका पारस्परिक सम्बन्ध
४.६ द्रव्य, गुण एवं पर्याय का पारस्परिक सम्बन्ध
४.७ षट्द्रव्यों का स्वरूप एवं लक्षण
४. ८ लोक का स्वरूप एवं प्रकार
४.६ नवतत्त्वों की अवधारणायें
उत्तराध्ययनसूत्र में प्रतिपादित आत्ममीमांसा
५. १. आत्मा का अस्तित्त्व
५. २. आत्मा का स्वरूप
५.३. जीवों के भेद
५.४ सिद्ध जीवों के भेद
५.५. संसारी जीवों के भेद
५.६. त्रस एवं स्थावर जीवों का वर्गीकरण
५.७. षट्जीवनिकाय के भेद - प्रभेद
उत्तराध्ययनसूत्र में प्रतिपादित कर्मसिद्धान्त
६.१. कर्म का स्वरूप
६. २. कर्म बन्ध के कारण
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
१२३ - १३६
१४१ -
१७८ -
२१२
-
१७६
२१०
२३८
www.jainelibrary.org