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क्षणभंगुरता का भान कराकर अप्रमत्त दशा/आत्म सजगता को बनाये रखना है। इसमें जीवन की क्षणभंगुरता का उपदेश अनासक्त या वीतराग जीवनदृष्टि के विकास के लिये है, न कि व्यक्ति को निराश बनाने के लिये। इस प्रकार उत्तराध्ययनसूत्र में जीवनदर्शन के सम्बन्ध में यथार्थ एवं सजीव विवेचना प्रस्तुत की गई है।
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