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उल्लेख के अतिरिक्त प्रमाणविषयक चर्चा का अभाव है। उत्तराध्ययनसूत्र के टीकाकारों ' ने भी 'सर्वप्रमाणैः प्रत्यक्षादि कहकर इसकी संक्षिप्त व्याख्या की है। मात्र लक्ष्मीवल्लभगणि (वि.सं. १५५२) ने इस प्रसंग में प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान और आगम इन चार प्रमाणों का नाम निर्देश किया है, जो भगवती, समवायांग आदि आगमों तथा न्यायदर्शन में मान्य हैं। प्रस्तुत विवेच्य ग्रन्थ उत्तराध्ययनसूत्र मूल और उसकी टीकाओं में इन प्रमाणों के नामोल्लेख के अतिरिक्त कोई चर्चा उपलब्ध नहीं होती है, अतः हम भी अपनी इस प्रमाणचर्चा को यहीं विराम देते हैं।
४३ उत्तराध्ययनसूत्र टीका पत्र २७६०, २७६४, २७६६ व २८०६ - (आगमपंचांगी क्रम ४१/५)। ४४ 'सर्वप्रमाणे : प्रत्यक्षानुमानोपमानागमैश्च'
- उत्तराध्ययनसूत्र टीका (लक्ष्मीवल्लभगणी, आगमपंचांगी) पत्र - २८०५ ।
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