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________________ १२ जीवन-रेखा साधना का प्रारम्भ दीक्षा के समय आपकी आयु ५३ वर्ष की थी और अध्ययन बहुत गहरा नहीं था। परन्तु, गृहस्थ जीवन से ही ध्यान एवं आत्म-चिन्तन की ओर मन लगा रहता था। उसी भावना को विकसित करने के लिए आप प्रायः मौन रखते थे । और ध्यान, जप एवं आत्म-चिन्तन में संलग्न . . रहते थे। इसके साथ-साथ उन्होंने तप-साधना भी प्रारंभ कर दी। वे सदा दिन भर में एक बार ही आहार करते थे और वह भी एक ही पात्र में खाते थे। उन्हें जो कुछ खाना होता, वह अपने एक पात्र में ही ले लेते थे। स्वाद पर, जिह्वा पर उनका पूरा अधिकार था। वे स्वाद के लिए नहीं, केवल जीवन निर्वाह के लिए खाते थे। दीक्षा ग्रहण करने के पश्चात् भी आपको अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, अनेक परीषह सहने पड़े। अनेक अनुकूल एवं प्रतिकूल समस्याएँ आपके सामने आई। परन्तु, आप सदा अपने विचारों पर, अपने साधना पथ पर अडिग रहे । आप उनसे कभी घबराए नहीं, विचलित नहीं हुए। वे समस्याओं को दुःख का, पतन का कारण नहीं, बल्कि जीवन विकास का कारण मानते थे। अतः शान्त भाव से उन्हें सुलझाते रहे और उन पर विजय पाने का प्रयत्न करते रहे । स्थविर-वास कुछ वर्षों में आपकी शारीरिक शक्ति काफी क्षीण हो गई। फिर भी आप विहार करते रहे। जब तक पैरों में चलने की शक्ति रही, तब तक अपने परम श्रद्धय गुरुदेव के साथ विचरण करते रहे। परन्तु जब पैरों में गति करने की शक्ति नहीं रही, चलते-चलते पैर लड़खड़ाने लगे, तब पूज्य गुरुदेव की आज्ञा से आप कुन्दन-भवन, ब्यावर में स्थानापति हो गए । मुनि श्री भानुऋषि जी म० आपकी सेवा में रहे। मुनि श्री पाथर्डी परीक्षा बोर्ड से जैन सिद्धान्ताचार्य की परीक्षा की तैयारी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004234
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSamdarshimuni, Mahasati Umrav Kunvar, Shobhachad Bharilla
PublisherRushabhchandra Johari
Publication Year1963
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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