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________________ जीवन-रेखा ११ घटने वाला अन्तिम वियोग था । उनके मन में मेरे भविष्य की प्रत्यधिक चिन्ता एवं वेदना थी । साधना के पथ पर उनकी मृत्यु के १० या ११ दिन बाद परम श्रद्धेय महासती श्री सरदार कुँवर जी म० (मेरी गुरणी जी म० ) अजमेर में पधारीं और मुझे मांगलिक सुनाने आई । मेरी अन्तर्वेदना देखकर उनका हृदय भर श्राया । उन्होंने मुझे सान्त्वना दी और जीवन का सही मार्ग बताने का प्रयास किया । इसके एक वर्ष बाद जब मैं अपने मायके दादिया गाँव में थी, तब भी श्रद्धेय गुरणी जी म० किशनगढ़ पधारी और पिताजी की प्राग्रहभरी विनती स्वीकार करके वे मुझे दर्शन देने दादिया गाँव पहुँचीं, श्रीर यहीं पर मेरे मन में श्रमण-साधना का बीज अंकुरित होने लगा । इसके पश्चात् मेरे पिताजी मुझे लेकर नोखा गाँव (जोधपुर) में गुरणी जी म० के दर्शनों के लिए पहुँचे और यहीं मेरे मन में दीक्षा ग्रहण करने का भाव जगा और मैंने अपना दृढ़ निश्चय पिताजी के सामने प्रकट कर दिया । उस समय नोखा गाँव से कुछ दूर कुचेरा में स्व० स्वामी जी हजारीमल जी महाराज विराजमान थे । पूज्य पिताजी उनके चरणों में पहुँचे और उनके मन में दीक्षा लेने की भावना जागृत हो उठी । और उसी समय मेरी ससुराल वालों को अजमेर तार दे दिया कि वह मेरे साथ दीक्षा ले रही है । बहुत प्रयत्न के बाद हम दोनों को दीक्षा स्वीकार करने की श्राज्ञा मिल गई । वि० सं० १९६४ मगसिर कृष्णा ११ को प्रातः ८ बजे परम श्रद्धेय स्वामी जी श्री हजारीमल जी महाराज के कर-कमलों से मेरी और पिताजी की दीक्षा सम्पन्न हुई । मैं परम श्रद्धेय महासती श्री सरदार कुंवरजी महाराज की शिष्या बनी और पिता जी परम श्रद्धेय श्री हजारीमल महाराज के शिष्य बने । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004234
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSamdarshimuni, Mahasati Umrav Kunvar, Shobhachad Bharilla
PublisherRushabhchandra Johari
Publication Year1963
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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